चंडीगढ़: उपभोक्ताओं को महंगी रसोई गैस से राहत देने के लिए उनके खातों में सब्सिडी की राशि सीधे ट्रांसफर हो रही हैं, और यह एक ईमानदार पहल कही जाती है, लेकिन वास्तव में इस सब्सिडी का फायदा उपभोक्ताओं की बजाय बैंकों को हो रही है, उपभोक्ताओं का सिर्फ नाम भर हैं, यह स्थिति भी तब से है जबसे राष्ट्रीयकृत बैंकों ने शहरों में सेविंग बैंक एकाउंट से न्यूनतम शेष यानी मिनीमत बैलेंस की राशि 2000 रुपये निर्धारित कर रखी हैं, इतनी रकम खाते में होनी जरूरी है, इसके उपरांत जो रकम बाकी बचे खातेदार उसी में से जरूरत पर निकासी कर सकते हैं, रसोई गैस के 12 सिलेंडरों पर सब्सिडी औसतन ढाई-तीन हजार रुपये के लगभग हैं, बशर्ते कि उपभोक्ता इतने सिलेंडर बुक करें, देखने में आ रहा है कि जबसे सिलेंडर महंगे हुए हैं, उपभोक्ता बुकिंग कम करवा रहे हैं, यहां चंडीगढ़ में ही ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या कालोनियों में हद तक है जो खाना पकाने में रसोई गैस की बजाय लकड़ी, लकड़ी के कोयले आदि पर निर्भर हैं, सर्दियों के मौसम में पेड़ों से सूखी टहनियां तोड़ने वाले इसकी खुलकर गवाही देते देखे भी जा सकते हैं, यानी दावे जो भी हो हकीकत में चंडीगढ़ भी पूर्णतय धुआं मुक्त नहीं हुआ हैं।
वहीं दूसरी ओर बैंकों ने न्यूनतम जमा राशि के नाम पर जो चाल चली है यह सीधे सीधे उपभोक्ताओं की सब्सिडी पर डाका है, पहले सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया आदि में सेविंग बैंक खातेदार थोड़ी रकम जमा रख शेष राशि का इस्तेमाल अपनी अन्य जरूरत के लिए कर देते थे, अब यदि खाते में 2000 या इससे कम हैं तो एक रुपया निकासी का भी विकल्प नहीं हैं।
ताज्जुब यह है कि जागो ग्राहक जागों का देश में पूरा शोर हैं, लेकिन बैंकों द्वारा न्यूनतम जमा के नाम पर उपभोक्ताओं के पैसों पर कुंडली मारकर बैठने की कहीं भी चर्चा नहीं हैं, विपक्षी दलों को भी जैसे हार पर हार का सांप सूंघ चुका हैं, पहले जीरो बैलेंस पर ग्राहकों को खाते खोलने के लिए लालच दिया गया था, अब 2000 रुपये रखने को विवश किया जा रहा हैं, सरकार सब्सिडी देकर उपभोक्ताओं पर एक तरह से अहसान जताती रहती है, प्रधानमंत्री मोदी भी अकसर अपने भाषणों में कहते हैं कि सब्सिडी की रकम सीधे खातों में दी जा रही है एक भी रुपये की हेराफेरी नहीं है, लेकिन इससे बड़ी और हेराफेरी क्या होगी कि उपभोक्ता के खाते में पैसे जमा हैं भले ही 2000 रुपये से कम हो पर उसमें से जरूरत पड़ने पर एक रुपया भी नहीं निकाल सकता।