
शिमला। राज्यपाल कलराज मिश्र ने आलू पर गहन वैज्ञानिक शोध पर जोर दिया है ताकि अधिक से अधिक किसानों को आलू की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और इसकी खेती किसानों की आजीविका का मुख्य साधन बन सके। यह बात उन्होंने आज यहां केन्द्रीय आलू अनुसंधान केन्द्र (सीपीआरआई) द्वारा अपने 71वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह के दौरान कही।
उन्होंने संस्थान को बधाई देते हुए कहा कि अपने लगभग सात दशकों की यात्रा के दौरान सीपीआरआई ने आलू अनुसंधान के क्षेत्र में देश को महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हिमाचल प्रदेश का जलवायु आलू की खेती करने के लिए अनुकूल है और राज्य के किसान लगभग पिछले 150 वर्षों से इसकी खेती कर रहे हैं। आधुनिक तकनीक और अनुसंधान के कारण अब देश के अन्य भागों में भी आलू भारी मात्रा में उगाया जा रहा है, जिसका अधिकतम श्रेय सीपीआरआई को जाता है।
राज्यपाल ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि राज्य में लगभग 14 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती की जा रही है और आलू का कुल उत्पादन लगभग दो लाख टन है। हिमाचली आलू अपनी गुणवत्ता के लिए देशभर में प्रसिद्ध है तथा इससे किसानों की आर्थिकी निरंतर सुदृढ़ हो रही है।
उन्होंने वैज्ञानिकों को बीमारी रहित आलू की कुफरी हिमालयनी, कुफरी गिरधारी और कुफरी करण जैसी किस्में व पर्यावरण मित्र विधि और कीटरोधक विधि जैसी तकनीकों को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि संस्थान लाभ देने वाली किस्मों के संरक्षण के लिए सराहनीय प्रयास कर रहा है और 20 पेटेंट हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ा है। उन्होंने चीन के बाद भारत आलू उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है जिसमें सीपीआरआई के शोध कार्य व आधुनिक तकनीकों के विकास की प्रमुख भूमिका है।
कलराज मिश्र ने कहा कि वर्ष 1995 और 2012 को इस संस्थान को भारत सरकार के कृषि अनुसंधान परिषद से सर्वश्रेष्ठ संस्थान का आवार्ड मिल चुका है, जो कि इसकी उपलब्धियों को दर्शाता है और इसके लिए संस्थान के सभी वैज्ञानिक और कर्मचारी बधाई के पात्र है।
उन्होंने कहा कि भारतीय आलू को नई ऊंचाइयों तक ले जाने, उत्पादन में संतुलन बनाए रखने, आलू के उत्पाद को 8 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने, आलू के निर्यात को एक प्रतिशत से अधिक करने, उत्पाद के बाद के होने वाले नुकसान को 16 प्रतिशत तक घटाने जैसी चुनौतियों से निपटने की आवश्यकता है।
राज्यपाल ने विशेष आलू उत्पाद क्षेत्रों की पहचान, आयात-निर्यात क्षेत्रों की स्थापना, देश-विदेश में आलू के लिए बाजार खोजने और अन्य सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देकर उन्हें आपस में जोड़ने की दिशा में कार्य करने की सलाह दी।
उन्होंने प्रदेश में आलू के घटते हुए उत्पाद पर चिंता जताते हुए विज्ञानियों से शोध के माध्यम से इसका समाधान खोजने का आह्वान किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संस्थान इन सभी चुनौतियों से निपटने में सफल होगा।
उन्होंने कहा कि आलू उत्पादन को किसानों की आय का मुख्य साधन बनाने पर कार्य होना चाहिए, जिसमें विज्ञानी अपने शोध कार्य से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इससे भारत आलू उत्पादन में चीन से आगे बढ़ने में सफल हो सकता है। उन्होंने किसानों के लिए बेहतर परिस्थितियां तैयार करने पर बल दिया ताकि वे पूरे विश्वास के साथ अपने खेतों से जुड़ सकें और अपने उत्पाद से छोटे-छोटे व्यवसाय जैसे चिप्स उत्पादन इत्यादि को अपना सकें जिससे ‘स्टार्ट-अप’ अभियान को भी संबल मिलेगा।
कलराज मिश्र ने युवा पीढ़ी को नशे से बचाने के लिए समाज के हर वर्ग से सामूहिक रूप से आगे आने का आह्वान भी किया।
राज्यपाल ने संस्थान की वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की और अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए अधिकारियों को सम्मानित किया।
सांसद सुरेश कुमार कश्यप ने विज्ञानियों से आलू की अच्छी पैदावार वाली किस्मों का विकास करने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों से अपनी कृषि आय को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शोध का भरपूर लाभ उठाने का भी आग्रह किया।
महापौर कुसुम सदरेट ने कहा कि शिमला में सीपीआरआई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का होना गर्व की बात है।
नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविन्द्र कौशल ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखें।
निदेशक, आईसीएआर, शिमला डॉ. एस.के. चक्रवर्ती ने संस्थान की विभिन्न गतिविधियों और उपलब्धियों का ब्यौरा दिया।
आईसीएआर, शिमला के सामाजिक विज्ञान विभाग के मुखिया डॉ. एन.के. पांडे ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा।