मान्यता है कि सिरमौर की चोटी क्वागधार से भगवान शिव और पार्वती ने महाभारत का युद्ध देखा था!
नाहन। देवभूमि हिमाचल में देवी-देवता अलग-अलग रूप में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। ऐसा ही एक पवित्र स्थान भूरेश्वर महादेव का है, जहां स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति कालांतर से मानी जातीजाती है। नाहन-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिला सिरमौर के पच्छाद उपमंडल के सराहां कस्बे से मात्र 12 किलोमीटर दूर पर्वत शिखर यह शिवलिंग है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई करीब 6800 फीट है। यहां शानदार मंदिर भी है, इसके चारों ओर मनोहर दृश्य देखते ही बनता है। स्थानीय ग्रंथों, सहित्यकारों व इतिहासकारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार द्वापर युग में इस पर्वत शिखर पर बैठकर भगवान शिव व मां पार्वती ने कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरवों व पांडवों में हुआ महाभारत का युद्ध देखा था। तभी से यहां पर स्वयं भू शिवलिंग की उत्पत्ति मानी जाती है।
भूरेश्वर महादेव की यह पर्वत श्रृंखला देवदार, कायल, बान, चीड़, बुरांस और काफल के पेड़ों से लबरेज है, जो यहां आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस पर्वत श्रृंखला से चंडीगढ़, पंचकूला, मोहाली, सोलन, कसौली, शिमला, चूड़धार व हरियाणा के मोरनी हिल्स का अदभुत नजारा देख पर्यटक बार बार यहां स्वयं ही खिंचे चले आते हैं। क्वागधार स्थित भूरेश्वर महादेव मंदिर में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं व पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यह मंदिर पच्छाद क्षेत्र के लोगों कुल देवता भी हैं।
दीवाली के बाद मनाया जाता है देव उत्सव
भूरेश्वर महादेव मंदिर में हर वर्ष दीवाली के बाद ग्यास को यहां देव उत्सव मनाया जाता है। हजारों श्रद्धालु अपने आराध्य देव के दर्शनार्थ मंदिर में पहुंचते हैं, जो कच्चा दूध चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करते हैं। भूरेश्वर महादेव का देव उत्सव दीवाली के साथ ही शुरू हो जाता है। देव कार के तहत जगह-जगह जागरण व करियाला, जबकि दशमी व ग्यास को मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है।
महाराजा सिरमौर को यहीं से मिला था संतान प्राप्ति का वरदान
महाराजा सिरमौर को भी यहां से संतान रूपी रत्न की प्राप्ति हुई थी। मान्यता है कि 16वीं सदी के आसपास जब महाराज सिरमौर यहां से गुजर रहे थे। तो उन्हें स्थानीय लोगों से इस मंदिर के बारे में पता चला। इस पवित्र स्थान की महत्ता का ज्ञान होने पर उन्होंने महादेव से संतान प्राप्ति की कामना कर ली। बताते हैं कि जल्द ही उनकी यह कामना पूर्ण हो गई।
पुजारी को राजा के काल से आज तक दी जाती है राशि
मनाेकामना पूर्ण होने पर महाराज मंदिर पहुंचे, तो मंदिर की विकट स्थित को देखते हुए उन्होंने पुजारी को इस देव स्थली का प्रबंधक बना दिया। साथ ही वेतन स्वरूप कुछ धनराशि भी निर्धारित कर दी। इसके बाद पुजारी को सालाना 12 सिक्के चांदी के मिलने लग गए। उन्हें पुश्तैनी माफिदार पुजारी के पट्टे से सम्मानित किया गया। आज भी उन्हें राजस्व विभाग द्वारा राशि प्रदान की जाती है, जिसका राजरूव विभाग में बाकायदा इंतकाल दर्ज होता है।
बुरांस के फूलों से गुलजार रहती पच्छाद क्षेत्र की वादियां
सिरमौर जिला के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र सराहां, टिक्कर, क्वागधार, बाग पशोग, पानवा और नैनाटिक्कर क्षेत्र के एक बड़े भू-भाग पर बुरांस का नजारा देख पर्यटक घाटी का लुत्फ उठाते है। इन वादियों में बुरांस के फूल मार्च, अप्रैल व मई महीने तक अपना अद्वभुत सौंदर्य बिखेरते हैं।
कैसे पहुंचे क्वागधार
देश के विभिन्न हिस्सों से क्वागधार पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए सबसे नजदीक के रेलवे स्टेशन धर्मपुर, सोलन व कालका हैं। चंडीगढ़ से क्वागधार की दूरी 70 किलोमीटर है। क्वागधार के समीप सबसे नजदीक का एयरपोर्ट शिमला व चंडीगढ़ हैं। जबकि क्वागधार में ही पच्छाद उपमंडल का सरकारी हेलीपेड भी बना है। नाहन-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पानवा से मंदिर की दूरी मात्र दो किलोमीटर है। मंदिर के समीप तक सड़क निर्माण किया गया है। पर्यटकों व श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सराहां व नैनाटिक्कर में धर्मशाला, हिमाचल टूरिज्म के होटल, सरायं, अन्य निजी होटल व हिमाचल सरकार के विश्रामगृह उपलब्ध हैं।
औषधीय गुणों से भरपूर काफल पाया जाता है क्वागधार क्षेत्र में
मध्य हिमालय पर्वत श्रृखंलाओं के शिवालिक क्षेत्र के जंगलों में पाए जाने वाले काफल क्वागधार क्षेत्र में भारी मात्रा में पाए जाते हैं। काफल औषधीय गुणों से भरपूर पेट, खून व हृदय से संबंधित कई बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी पाया जाता है। चखने में काफल का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। प्रदेश में पाए जाने वाले काफल का वैज्ञानिक नाम च्मेरिका है। काफल का पेड़ आमतौर पर बान और बुरांस के जंगलों में पाया जाता है। काफल के पेड़ की औसतन ऊंचाई 20 से 40 फीट होती है।