नाहन। गोगाजी उत्तर भारत के लोक देवता हैं जिन्हे ‘जाहरवीर गोगा राणा या जाहरपीर गोगा जी’ के नाम से भी जाना जाता है। जब सिरमौर रियासत में राजा शमशेर प्रकाश का राज था। तो एक बार रात्रि के समय राजा शमशेर प्रकाश को गोगाजी ने स्वपन में दर्शन दिये और नाहन में अपना स्थान बनाने का आदेश दिया। गोगाजी के आदेशानुसार राजा ने शहर के रामकुंडी में गोगाजी का स्थान बनवाया।
मगर गोगाजी को वह स्थान मंजूर नही हुआ क्योंकि वहाँ आम जनता का पहुंच पाना दुर्गम था। एक बार पुनः गोगाजी ने राजा शमशेर प्रकाश को स्वपन में दर्शन दिये और ऐसी जगह स्थान बनाने को बोला जहाँ लोग आसानी से माथा टेक सकें। इस बार राजा ने स्थान वहाँ पर बनवाया जहाँ वर्तमान में गोगाजी का मंदिर है।
पंडित सुखदेव शर्मा ने बताया कि वर्ष 1990 में गोगा जी ने उनको स्वपन में दर्शन दिए और गोगामेड़ी के निर्माण करने का आदेश दिया। यहाँ यह भी बताना ज़रूरी है कि नाहन में केवल सावन- भाद्रपद के महीने में ही गोगाजी की पूजा चुनिंदा परिवारों द्वारा की जाती थी और ना ही कोई बसेरे – भंडारे का आयोजन होता था। केवल भाद्रपद की नवमी जिसे गोगा नवमी के नाम से जाना जाता है पर छोटे मेले का आयोजन होता था। वर्ष 1992 में गोगा माड़ी का निर्माण कार्य संपन्न हुआ और नाहन शहर में ‘पहला बसेरा और पहला भंडारा’ सुखदेव शर्मा द्वारा गोगाजी के आशीर्वाद से करवाया गया।
एक बार पुनः गोगाजी ने सुखदेव शर्मा को स्वपन में दर्शन दिये और उनके पवित्र धाम गोगामेड़ी (राजस्थान) आने का आदेश दिया। गोगामेड़ी के मुख्य मंदिर में एक नेत्रहीन पुजारी ‘दादा अनारकली’ थे जिनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने गोगाजी के साक्षात दर्शन किये थे जिस वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। जब सुखदेव शर्मा पहली बार गोगामेड़ी पहुंचे तो मुख्य मंदिर में पहुंचते ही दादा अनारकली ने उनका नाम लेकर संबोधित किया “आ गए सुखदेव शर्मा.. बहुत समय लगा दिया आने में.. अब गोगाजी का आदेश है कि तुम नाहन के गद्दी भगत बनोगे” ऐसा कहकर दादा अनारकली ने सुखदेव शर्मा को पगड़ी बांधी और नाहन का गद्दी भगत बनाया। सुखदेव शर्मा ने उम्रदराज व्यक्ति होने के कारण अपना भगती का कार्यभार अपनेबड़े पोते भावन शर्मा को सौंप दिया है।
हर वर्ष सावन माह की संक्रांति को कालीस्थान मंदिर से शुरू होकर गोगाजी की पवित्र छड़ी घर-घर माथा टेकने के लिए लायी जाती है और रक्षा बंधन वाले दिन यह छड़ी बड़ा चौक में एक दिन के लिए स्थापित की जाती है, अगले दिन छोटा चौक में गोगा नवमी तक नौ दिन के लिए छड़ी स्थापित की जाती है। गोगा नवमी के दिन नाहन गद्दी भगत द्वारा पवित्र छड़ी को गोगा माड़ी लाया जाता है। पहले सुखदेव शर्मा गोगाजी की छड़ी को गोगा माड़ी लाते रहे मगर उम्रदराज होने के कारण अब यह परंपरा उनके पोते भावन शर्मा द्वारा निभाई जाती है।
8 वर्ष की छोटी उम्र से ही भावन शर्मा गोगाजी की भक्ति में लीन हैं। मान्यतानुसार गोगाजी के गद्दी भगत को यह वरदान होता है कि सांप का काटा, कोई ऊपरी बाधा इत्यादि का हल करने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार नाहन गोगा माड़ी में समय समय पर चमत्कार देखने को मिलते हैं।