नाहन। सिरमौर भाजपा के जिला सह मीडिया प्रभारी प्रताप सिंह रावत ने मीडिया को जारी बयान करते हुए कहा है कि कांग्रेसी नेता एसएमसी अध्यापकों पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना बंद करें। क्योंकि यदि इनको तथा इनकी कांग्रेस सरकार को इन एसएमसी अध्यापकों की इतनी चिंता होती तो इससे पूर्व पांच वर्ष पहले हिमाचल प्रदेश में इनकी सरकार थी उस समय इनकी सरकार ने इनके लिए पॉलिसी क्यों नहीं बनाई।
रावत ने बताया कि एसएमसी अध्यापकों की पॉलिसी तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने 17 जुलाई 2012 को दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों के लिए बनाई थी क्योंकि दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में नियमित अध्यापक आने से कतराते हैं। इसलिए इसको ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह पॉलिसी बनाई थी। लेकिन बाद में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने वर्ष 2014 में इसी पॉलिसी के तहत प्रदेश के सभी स्कूलों में एसएमसी अध्यापकों की नियुक्ति कर दी लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इनके लिए कोई भी पॉलिसी नहीं बनाई।
यदि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह एवं कांग्रेस पार्टी के अन्य नेताओं को एसएमसी अध्यापकों की इतनी चिंता होती तो शायद आज एसएमसी अध्यापकों को ऐसे दिन ना देखने पड़ते। रावत ने बताया कि भाजपा की जयराम सरकार कर्मचारी विरोधी नहीं बल्कि कर्मचारी हितैषी सरकार है। एसएमसी अध्यापकों का मामला उनके ध्यान में है। अभी पिछले दिनों प्रदेश के नवनियुक्त शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने एसएमसी अध्यापकों को आश्वासन देते हुए कहा है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से देख रही है और उच्च न्यायालय में पुनर याचिका दायर करने पर विचार कर रही है ताकि इन एसएमसी अध्यापकों को राहत मिल सके।
रावत ने सरकार से मांग करते हुए कहा है कि सरकार और माननीय उच्च न्यायालय को कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए ताकि दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई प्रभावित ना हो। क्योंकि इन दिनों कोरोना जैसी भयानक बीमारी के चलते प्रदेश के सभी स्कूल बंद है। इसलिए बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है। यदि सरकार और माननीय उच्च न्यायालय कोई भी बीच का रास्ता निकालती है तो इससे एसएमसी अध्यापकों के साथ साथ बच्चों के अभिभावकों को भी राहत मिलेगी।