
भेड़पालकों ने अपने पशुओं के साथ खुले आसमान तले ही डेरा जमा रखा था। भारी बर्फबारी के दौरान उन्होंने आग जलाने के काफी प्रयास किए, मगर तेज हवाओं व बर्फबारी के चलते उनके सारे प्रयास विफल हो गए। मजबूरन उन्हें बर्फबारी के बीच पूरी रात भूखे-प्यासे रहकर जंगल में खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ी। सोमवार दूसरे दिन भी दोपहर बाद तक बर्फबारी का सिलसिला जारी रहा।
दोपहर तक जंगल में करीब डेढ़ फुट से ज्यादा बर्फ जम चुकी थी। डेढ़ फुट बर्फ से ढके रास्ते से अपने पशुधन के साथ बड़ी मुश्किल से बुधवार को वे नौहराधार पहुंचे । भेड़ पालक मंगतराम ने आज के बाद बताया कि उन्होंने सपने में भी नही सोचा था कि नवंबर माह में ऐसी भारी बर्फबारी होगी। तेज हवाएं चलने व आग न जलने के चलते खाना नहीं बना सके।भेड़पालकों ने बताया कि वे पुश्तों से इस बर्फीले जंगल से अपने पशुधन के साथ शीतकालीन प्रवास के लिए मैदानी इलाकों के लिए निकलते हैं।
अपने पुश्तैनी धंधे से आजीविका चलाने वाले भेड़पालकों के पास न तो वाटरप्रूफ कपड़े होते हैं, न बर्फ से निपटने की कोई विशेष व्यवस्था है और न ही तंबू होते हैं। इन्होंने सरकार से भविष्य में हिमपात के दौरान उन्हें यथासंभव मदद करने तथा उनकी सुध लेने की अपील की।