नाहन (हिमाचलवार्ता)। पहाड़ी संस्कृति और प्रदेश की विरासतों में शुमार होता है गिरीपार का माघी पर्व। जाती हुई सर्दियों के साथ रिश्तो में प्यार की गर्माहट के साथ अतिथियों का सत्कार भी इस पर्व में देव तुल्य होता है। बता दें कि सिरमौर जिला के गिरी पार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली के उपरांत माघी त्यौहार का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सोमवार से शुरू हुए चार दिवसीय इस पर्व के दौरान अलग अलग दिन लोग असकली, पटांडे, धोरोटी, मूड़ा, शाकुली व तेलपकी आदि पारम्परिक व्यंजन बनाते हैं।
बर्फ अथवा कड़ाके की ठंड से प्रभावित रहने वाली गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर की विभिन्न पंचायतों मे हालांकि दिसंबर माह की शुरुआत से ही मांसाहारी लोग अन्य दिनों से ज्यादा मीट खाना शुरु कर देते हैं, मगर माघी अथवा पौष त्यौहार के दौरान क्षेत्र की लगभग 135 पंचायतों के मांसाहारी परिवारों द्वारा बकरे काटे जाने की परंपरा भी अब तक कायम है। माघी त्यौहार को खड़ियांटी, डिमलांटी, उत्तरांटी व साजा अथवा संक्रांति के नाम से मनाया जाता है।
पहले तीन दिन अलग-अलग निर्धारित तिथि पर विभिन्न गांवों में बकरे कटते हैं, जबकि संक्रांति के अवसर पर लोग अपने कुल देवता की पूजा करते हैं तथा इस दिन किसी भी घर में मीट नहीं पकता है। इस त्यौहार तथा पंचायत चुनाव के चलते क्षेत्र में अचानक बकरों की कीमत में उछाल आ गया है और जिंदा बकरे 400 रुपए किलो तक बिक रहे हैं।