नाहन 04 जुलाई (हिमाचल वार्ता न्यूज) :- केदारनाथ शिव धाम की यात्रा के उपरांत देवठी मझगांव क्षेत्र के आराध्य देव भूतेश्वर महादेव अर्थात टकराल देवता बीते 26 जून को वापिस देवठी मंझगांव लौट आए है । शांद महायज्ञ व कुरूड स्थापना होने तक देवता को मंदिर के साथ एक अस्थाई टैंट लगाकर रखा गया है । पुजारी शिवराम के अनुसार टकराल देवता का परंपरा के अनुसार केदारनाथ बद्रीनाथ व हरिद्वार सहित अन्य छोटे तीर्थ स्थलों पर स्नान करवाया गया है । यात्रा पर पुजारी सहित कुल नौ देवलु गए हुए थे । जिनमें देवा शिवराम सहित कुल नौ यात्री है जिनमें जातीराम कमल, जोगिन्द्रर, प्रताप सिंह, बाबा हरिचंद शर्मा के अतिरिक्त पांच गांव ठारू, कूड़ू, लवाणा, मझगांव , देवठी से एक -एक व्यक्ति यात्रा में शामिल थे ।
देवा शिवराम ने बताया कि पांच जुलाई को देवता के सम्मान में रात्रि को ददौण की मशाल यात्रा की जाएगी जिसमें क्षेत्र के हजारों लोग शामिल होगें। छः जुलाई को प्रातः सात बजे मंदिर के शीर्ष पर कुरूड़ की स्थापना की जाएगी तथा देवता की विशेष पूजा हवन उपरांत भंडारे का आयोजन होगा जिसमें करीब दस हजार लोगों के शामिल होने की संभावना है।
पुजारी शिवराम ने देवता के इतिहास के बारे बताया कि देवठी मझगांव में दो रूद्र महाराज विराजमान है जिनमें एक पशुपति जिनका प्रादुर्भाव दही मंथन से हुआ था जबकि दूसरे भूतपति महादेव हैं। बताया कि भूतपति महादेव की उत्पति का इतिहास भी इस क्षेत्र के रियासती ठकुराई से जुड़ा है। जनश्रुति के अनुसार देवठी मंझगावं के थोड़ी दूर गढ़किला के अंतिम शासक ठाकुर राम सिंह रहा करते थे । जिनकी रानी काफी सुंदर हुआ करती थी । मंझगांव के राजपूत बहादुर के दिल में रानी के प्रति पाप उमड़ गया और ठाकुर रामसिंह को मारने के लिए योजना बनाई गई । ताकि रानी को पत्नि बनाया जा सके । योजना के अनुसार मलावण से आने वाला पानी राजपूत द्वारा बंद कर दिया गया और एक हरिजन को संदेश लेकर राजा के पास भेजा कि पंडितों के अनुसार जब तक राजा पानी में हाथ नहंी डालेगें तब तक पानी नहीं आएगा । प्रजा का हित देखते हुए राजा पानी के स्त्रोत मलावण की ओर हरिजन व्यक्ति के साथ चल पड़े । राजा ने जैसे ही पानी को जोड़ने के लिए कूहल में हाथ डाला राजा का सिर काट दिया गया। बताते हैं कि सिर कटा धड़ घोड़े पर सवार होकर रूद्र महाराज के मंदिर में आकर समा गया था । जिसकी भूतेश्वर महादेव अर्थात टकराल देवता के नाम से इस मंदिर में पूजा की जाती है । इसी प्रकार राजा के वापिस न लौटने पर रानी काफी व्याकुल हो गई । अक्समात रानी को कूहल के पानी में राजा का सिर बहता हुआ दिखाई दिया। अस्मिता की रक्षा करने के लिए देवठी के मंदिर के प्रांगण में राजा का सिर गोद में लेकर रानी सती हो गई थी । इस गांव में सती का चैतरा आज भी विराजमान है ।
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Sunday, July 6