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    Home»आस्था»उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला की 18 हजार फुट ऊंची लिपुलेख पहाडिय़ों से शिव दरबार साफ दिखाई देता है।
    आस्था

    उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला की 18 हजार फुट ऊंची लिपुलेख पहाडिय़ों से शिव दरबार साफ दिखाई देता है।

    By Himachal VartaJune 30, 2023
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    ( उत्तराखंड) ( हिमाचल वार्ता न्यूज़  )  भगवान शिव का घर माने जाने वाले कैलाश पर्वत के दर्शन अब भारत से ही हो सकेंगे। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला की 18 हजार फुट ऊंची लिपुलेख पहाडिय़ों से कैलाश पर्वत साफ दिखाई देता है। यहां से पर्वत की हवाई दूरी 50 किलोमीटर है। इस नए दर्शन मार्ग को स्थानीय ग्रामीणों ने तलाशा है। ग्रामीणों की सूचना पर पहुंची अफसरों और विशेषज्ञों की टीम ने रोड मैप, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, दर्शन के प्वाइंट तक जाने का रूट सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिए सर्वे किया। वे अपनी रिपोर्ट पर्यटन मंत्रालय को सौंपेंगे। इसके बाद इस नए दर्शन प्वाइंट पर काम शुरू हो जाएगा। स्थानीय लोगों का यह भी दावा है कि पिथौरागढ़ के ही ज्योलिंगकांग से 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधूरा चोटी से भी कैलाश पर्वत के दर्शन हो सकते हैं।लिंपियाधूरा चोटी के पास ओम पर्वत, आदि कैलाश और पार्वती सरोवर हैं। यहां से कैलाश पर्वत के दर्शन होने से इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन का स्कोप बढ़ेगा। गौरतलब है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2019 में हुई थी। उसके बाद पहले कोरोना के कारण फिर भारी बर्फबारी की वजह से यात्रा रोक दी गई थी और उसके बाद अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। कैलाश यात्रा तीन अलग-अलग राजमार्ग से होती है। पहला- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), दूसरा- नाथू दर्रा (सिक्किम) और तीसरा-काठमांडू। इन तीनों रास्तों पर कम से कम 14 और अधिकतम 21 दिन का समय लगता है। 2019 में 31 हजार भारतीय यात्रा पर गए थे।
    विशेषज्ञ टीम में शामिल कृति चंद ने बताया कि लिपुलेख की जिस पहाड़ी से पर्वत दिखता है, वह नाभीढ़ांग के ठीक दो किलोमीटर ऊपर है। यहां से चार-पांच दिन की यात्रा करके कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। श्रद्धालुओं सडक़ मार्ग से धारचूला और बूढ़ी के रास्ते नाभीढांग तक पहुंचना होगा। इसके बाद दो किलोमीटर की चढ़ाई को पैदल तय करना होगा। पर्यटन विभाग का कहना है कि ओल्ड लिपुलेख पहुंचने के लिए दो किलोमीटर की चढ़ाई चढऩी पड़ती है, जो आसान नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए भी रास्ता बनाया जा सकता है। स्नो स्कूटर की मदद से भी श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पहाड़ी की चोटी तक पहुंचाया जा सकता है।

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