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    Home»हिमाचल प्रदेश»शिमला»नवउदारवाद की नीतियों के कारण स्थायी नौकरियां खत्म हो गई,
    शिमला

    नवउदारवाद की नीतियों के कारण स्थायी नौकरियां खत्म हो गई,

    By Himachal VartaNovember 4, 2023
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    शिमला ( हिमाचल वार्ता न्यूज)सीटू ने रेलवे व बिजली बोर्ड के निजीकरण के खिलाफ और हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा बिजली बोर्ड में स्मार्ट मीटर लगाने के लिए टेंडर आमंत्रित करने के विरोध में प्रदर्शन किया। इस मौके पर बोलते हुए सीटू शिमला जिला अध्यक्ष कुलदीप डोगरा, सचिव अमित, उपाध्यक्ष रणजीत, देवेंद्र, कामराज ने कहा कि देश की आजादी के बाद भारत यह सुनिश्चित करना चाहता था कि लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो। इसलिए, औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयास किए गए, जिससे पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान 12 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) का गठन हुआ। देश को कल्याणकारी राज्य से परिभाषित किया गया, परंतु कल्याणकारी राज्य नीति के विपरीत, 1990 के दशक में नीतियां उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ओर स्थानांतरित हो गई, जिन्हें हम नवउदारवाद की नीतियों के नाम से जानते है।नवउदारवाद की नीतियों के कारण स्थायी नौकरियां खत्म हो गई, बड़े पैमाने पर ठेकेदारी प्रथा और आउटसोर्सिंग शुरू हो गई, जिससे युवाओं को कारपोरेट खिलाडिय़ों की दया पर छोड़ दिया गया। देश की मोदी सरकार नवउदारवाद की नीतियों को तेजी से लागू कर, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण कर रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण का मतलब है, कुछ बड़े घरानों या अंतरराष्ट्रीय बड़े व्यवसायों को देश की संपत्ति को बेच देना। देश की मोदी सरकार रेलवे को नष्ट कर रही है, जिसके पास प्रति दिन 2.40 करोड़ यात्रियों को सेवा देने वाले लगभग 7,300 रेलवे स्टेशन हैं तथा 9,140 मालगाडिय़ां हैं, जो प्रतिदिन 1.4 बिलियन मीट्रिक टन ढोती हैं।मजदूर नेताओं ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार बिजली क्षेत्र को प्राइवेट कंपनियों को देने के लिए बेचैन है। बिजली क्षेत्र को प्राइवेट कंपनियों के हवाले करने के इरादे से वर्ष 2014 से 2022 तक, पांच बार बिजली बिल में संशोधन करने का प्रयास किया गया और वर्ष 2022 में भी संसद में यह बिल पेश किया जा चुका है। विश्व बैंक के निर्देशों के तहत सार्वजनिक बिजली क्षेत्र का निजीकरण करने के लिए, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने खतरनाक मॉडल स्मार्ट मीटरिंग परियोजना पेश की। यह योजना प्रत्येक उपभोक्ता पर एक बड़ा वित्तीय बोझ डालती है, जिसके लिए प्रति स्मार्ट मीटर 8,000-12,000 रुपए का भुगतान करना अनिवार्य है, जिसका जीवनकाल लगभग 7-8 वर्ष होने का अनुमान है। यह प्रभावी रूप से पूरे भारत में 26 करोड़ उपभोक्ताओं से 2,50,000 करोड़ रुपए से अधिक की सीधी लूट में तबदील हो जाता है। मजदूर नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार अभी एक और खतरनाक नीति ला रही है जिससे बिजली क्षेत्र स्वयं प्राइवेट कंपनियों के पास चला जाएगा। बिजली बोर्डों का अस्तिव भी खतरे में पड़ जाएगा।
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