नाहन ( हिमाचल वार्ता न्यूज)( एस पी जैरथ)सिरमौर के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पुश्तैनी लोहारों द्वारा जमीदारों के औजार बनाने की प्रक्रिया जारी है। गांव के लोहार जमींदारों के औजार बिना पैसे लिए बनाते हैं और बदले में उन्हें हर 6 महीने के बाद फसल आने के समय अनाज का एक निश्चित भाग दिया जाता है। यहां यद्यपि लोहार के पास खेतीहर जमीन नहीं होती परंतु गांव के जमींदार हर 6 महीने बाद अपनी फसल का निश्चित भाग लोहार को देते हैं जिससे लोहार के पास गांव के जमीदारों से काफी अनाज इकट्ठा हो जाता है और उनके परिवार का भरपूर भरण पोषण चलता रहता है।ग्रामीणों से एकत्रित होने वाले अनाज से न केवल लोहार का साल भर के भोजन की व्यवस्था चलती है अपितु कुछ अनाज बेचकर लोहार अपने परिवार के लिए कपड़ा लता और अनेक प्रकार की बाजारों से खरीद की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता है। लोहार गांव के एक निश्चित भाग में बने आरण में जमीदारों के बुलावे पर उनके कृषि औजारों की मुरम्मत करते हैं और साथ में जमीदारों को नए औजार भी बना कर देते हैं।आरण में किसानों के औजार बनाने के लिए किसानों द्वारा लोहार को लोहा और कोयला उपलब्ध कराया जाता है। ये पुश्तैनी कारीगर किसानों के लिए कुल्हाड़ी, दराट, दराटी, झब्बल, कुदाली, गैंती, हल के फाले, आडू़, छूरी, चाकू, छैणी, हथौड़े, बसौले, डांगरे तलवारें और किसानों की रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले सभी प्रकार के औजार तैयार करके देते हैं।आरण को हवा देने के लिए लोहार प्राचीन काल से भेड़ो और बकरियों की खालों की फुकी का उपयोग करते थे परंतु मशीनी युग आने के बाद अब लोहार विद्युत और हस्तचलित ब्लोअर का उपयोग करते हैं और लोहे को गर्म करके भारी भरकम हथौड़ों की मार से लोहे के औजार तैयार करके जमींदारों को मुहैया करवाते हैं।सिरमौर जिला में विकासखंड संगड़ाह के गांव अरट के पुश्तैनी कारीगर लोहार कमल धीमान बताते हैं कि उन्होंने जमीदारों के औजार बनाने की कला के लिए किसी सरकारी व गैरसरकारी संस्थान से प्रशिक्षण नहीं लिया है अपितु उन्होंने औजार बनाने की यह कला अपने पिता पुश्तैनी कारीगर दौलतराम से सीखी है। कमल धीमान किसानों की आवश्यकता के सभी प्रकार के औजार बनाने में पारंगत है और उन्हें उत्तम क्वालिटी के डांगरे व तलवारें बनाने का हुनर भी आता है।कमल धीमान से डांगरे बनवाने के लिए डांगरे के शौकीन दूर-दूर से आते हैं। इसी प्रकार के पुश्तैनी कार्य कर आज भी गांव-गांव में भरपूर संख्या में किसानों के औजार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। लोहार के आरण इस क्षेत्र के हर गांव में गांव के बाहर एक निश्चित स्थान पर बने हैं जहां हर 6 महीने में लोहार चंद दिनों के लिए जाकर उस गांव के जमींदारों के औजार तैयार करके देता है।आरण के भीतर लोहा पिघलाने के लिए मिट्टी और पत्थर से एक चूल्हा तैयार किया जाता है जिसमें एक ओर भेड़ बकरी के खालों की पारंपरिक फुकी और आधुनिक ब्लोअर से हवा देने के लिए सुराख होता है और आरण के भीतर कोयला डालकर जब फूकी और ब्लोअर से हवा देने से चंद मिनटों में ही लोहा पिघल-कर नरम हो जाता है और फिर जमींदारों द्वारा भारी भरकम हथौड़ों की मार से लोहार लोहे को विभिन्न प्रकार के औजारों का रूप देता है।इन औजारों को पुश्तैनी लोहार द्वारा विशेष विधि द्वारा ठंडा पानी झिड़ककर विशेष विधि से पाण दी जाती है जिससे औजारों में इतनी मजबूती आती है कि भारी से भारी कृषि कार्य करते हुए ये औजार आसानी से टूटते नहीं है।वास्तव में सिरमौर जिला के गिरी पार क्षेत्र के गांवों में पुश्तैनी लोहारों का जमीदारों की आर्थिकी में महत्वपूर्ण योगदान होता है और इन लोहारों के बिना कृषि और बागवानी कार्यो को सुचारू रूप से चलाना संभव ही नहीं होता। सिरमौर जिला के गिरीपार इलाकों में पुश्तैनी कार्यक्रम की यह परंपरा आज भी गांव-गांव में यथावत चल रही है।