राजगढ़ ( हिमाचल वार्ता न्यूज):– राजगढ़ क्षेत्र में बीशू की साजी अर्थात बैशाखी का त्यौहार बड़े हर्षोंल्लास व परंपरागत तरीके के साथ मनाया गया । लोगों द्वारा परंपरा के अनुरूप इस त्यौहार पर विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन बनाए गए । जिनमें आटे के बकरे बनाने की अनूठी परंपरा बदलते परिवेश में भी कायम है । इस पर्व पर आटे के बकरे तथा पटांडे व खीर बनाना घर में शुभ मानते हैं । कालांतर से इस पर्व को हर वर्ष नववर्ष के आगमन के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। बीशू का त्यौहार राजगढ़ क्षेत्र की भांति सीमा पर लगते जिला शिमला व सोलन में भी पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है । यह पर्व तीन दिन लगातार मनाया जाता है । जिसमें सकां्रति से दो दिन पहले लोग अपने घरों में सिडडू बनाते है । अगले दिन पहले लोग दिन में अपने घरों में ं आटे के बकरे तथा रात्रि को अस्कलियां बनाने की विशेष परंपरा है जिसे घी के साथ खाया जाता हैं । संक्राति के दिन लोगों द्वारा अपने घरों पटांडे और खीर बनाई जाती है । इसके अतिरिक्त घर के बाहर बुरांस के फूलों की माला लगाते है जिसे इस पर्व पर बांधना बहुत शुभ माना जाता है । सिरमौर में बीशू की साजी के अवसर पर कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है ।
वरिष्ठ नागरिक कुशल तोमर ने बताया कि बीशू की साजी अर्थात सक्रंाति को लोगों द्वारा अपने कुलदेवता के मंदिर में विशेष पूजा की जाती है जिसमें सभी लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं । कामना पूरी होने पर लोग इस दिन मंदिर में मनौती भी चढ़ाते हैं । उन्होने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में वर्ष में पड़ने वाली चार बड़ी साजी का विशेष महत्व है । जिनमें बैशाख संक्राति, श्रावण मास की हरियाली संक्राति, दीपावली और मकर संक्राति शामिल है । इस दिन लोग अपने कुलदेवता के मंदिर में जाकर विशेष रूप से हाजरी भरते हैं । बैशाखी के पर्व पर राजगढ़ के समीप शाया स्थित शिरगुल देवता के मंदिर में हजारों लोगों ने अपनी हाजरी भरी । सबसे अहम बात यह है कि पहाड़ी मंदिरों में भोग के नाम पर चावल के दाने दिए जाते हैं जिसमें कुछ दाने लोग भोग के तौर पर पानी के साथ ग्रहण करते हैं और शेष चावल के दानों को देवता के कवच के रूप में सहेज कर रखते हैं । लोगों का विश्वास है कि देवता के गुर द्वारा दिए गए चावल के दाने खाने से शरीर में किसी नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होता है ।
प्रदेश के जाने माने साहित्यकार शेरजंग चैहान ने बताया कि बैशाख की सक्रांति आने से पहले लोग अपनी विवाहित बेटियों व बहनों को उनके घर जाकर त्यौहार देने की विशेष परंपरा आज भी कायम है जिसका बेटियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है । इसके अतिरिक्त बीशू पर्व पर लोग अपने रिश्तेदारों व विवाहित बहनों व बेटियों को आमंत्रित भी करते हैं । मेले व त्यौहार किसी भी क्षेत्र की संस्कृति के संवाहक है जो लोगों को अपने अतीत से जोड़ते हैं
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Thursday, May 16