नाहन ( हिमाचल वार्ता न्यूज) (एसपी जैरथ):-श्री रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत राजकीय उच्च विद्यालय कानसर में भारतीय भाषा समर कैंप के तहत एक पारंपरिक सिरमौरी खाद्य प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
स्कूल के बच्चों के द्वारा पारंपरिक व्यंजनों को उनके मूल रूप में संजोते हुए उन व्यंजनों को भी बना कर प्रदर्शित किया गया जो लगभग लुप्त प्रायः हो चुके हैं। प्रदर्शनी में बच्चों और अध्यापकों ने मिलकर असकली, पटांडे, चिलड्डू, सत्तू, खिचड़ी,धींदडे जैसे कई पारंपरिक खाद्य व्यंजन विद्यालय में ही तैयार किया गया।
ड़ी बात तो यह है कि छात्र-छात्राओं ने न केवल पारंपरिक व्यंजन बनाए बल्कि उनकी रेसिपी को भी अतिथियों के साथ साझा किया। यही नहीं बनाए गए व्यंजनों की फूड वैल्यू भी बताई गई। बड़ी बात तो यह है कि यह बच्चे 67 और 8th क्लास के हैं जिन्होंने खुद अपने हाथों से अपनी योग्यता को प्रमाणित किया।
जिनमें छठी कक्षा की आरती तोमर के द्वारा बनाए गए चिल्डू और अनार दाने की चटनी के स्वाद में सिरमौर रसोई की साफ झलक नजर आई। वही कमल ने असकली तो यगेश ने भरी शिमला मिर्च, भून कर बनाया गया कटहल और ऑयल फ्री करेला बनाकर सबको हैरत में डाल दिया।
कक्षा 7 की अवन्या की खचड़ी तो हिमांशु व देवांशु के पकोड़े और लाल चावल की खीर ने स्वाद का मेहमानों को भरपूर जायका दिया। वंदना और अर्नवी ने सूरू का रायता जिसे कैक्टस भी कहा जाता है उसे कोयल का डंगार देकर बनाया।
वंदना ने बताया कि यह रायता पेट और लीवर के लिए रामबाण दवा मानी जाती है। आयोजित की गई इस व्यंजन प्रदर्शनी में अध्यापकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए स्वादिष्ट पकवानों का खूब लुत्फ उठाया और जमकर सराहना की।
विद्यालय की एक्टिविटी इंचार्ज बबीजा शर्मा ने बताया कि भारतीय भाषा समर कैंप सत्र 2025-26 के तहत विद्यालय में 16 जून 2025 से 23 जून 2025 तक कई गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि अब तक विद्यार्थी फ्लैश कार्ड बनाने, देशभक्ति नारों का अनुवाद करने, देशभक्ति गीत गाने और पारंपरिक खाद्य व्यंजन प्रस्तुत करने जैसी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले चुके हैं।
इस अवसर पर विद्यालय के कार्यकारी मुख्याध्यापक किशोर भारद्वा ज ने कहा कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे ऐसे कार्यक्रम हमें अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत से जोड़े रखते हैं।
उन्होंने जोर दिया कि इन आयोजनों से बच्चों को अपनी समृद्ध पारंपरिक विरासत पर गर्व महसूस होता है और उन्हें इसे सहेजने की प्रेरणा मिलती है। यह पहल न केवल बच्चों में पाक कला कौशल को बढ़ावा देती है, बल्कि उन्हें अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी संस्कृति को महत्व देने के लिए भी प्रेरित करती है।