13 जनवरी { हिमाचलवार्ता न्यूज़ }:- हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. कहते हैं कि भगवान शिव को प्रदोष व्रत अत्यंत प्रिय है.
हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. कहते हैं कि भगवान शिव को प्रदोष व्रत अत्यंत प्रिय है. इस दिन विधिपूर्वक भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने से भगवान प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. पौष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 15 जनवरी, शनिवार के दिन है. इस दिन भगवान शिव के लिए व्रत रखा जाएगा. शनिवार होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जानेंगे. इस दिन भोलेनाथ के साथ-साथ शनि देव का भी आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है.
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ शनि देव की भी पूजा करने से दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. कहते हैं कि संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत रखना चाहिए. भोलेनाथ प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इस दिन मंत्रों का जाप करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है. आइए जानते हैं इस दिन किन मंत्रों का जाप है जरूरी.
प्रदोष व्रत मंत्र जाप
1.पंचाक्षरी मंत्र
ॐ नम: शिवाय।
2.महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
3. लघु महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः
4. शिव गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।
5. शनिदेव में मंत्र
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।।
6. ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।
ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ मन्दाय नमः।
ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।
7. शनि गायत्री मंत्र
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
8. ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
9. शनि महामंत्र
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
10. शनि का वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
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