संगड़ाह 08 फरवरी (हिमाचलवार्ता न्यूज़ ) : – जेदेश व प्रदेश के विभिन्न विकसित क्षेत्रों में बेशक बरसों पहले पानी से चलने वाले पारंपरिक घराट लुप्त हो चुके हों, मगर जिला सिरमौर में आज भी घराट चल रहे हैं। उपमंडल संगड़ाह के दूरदराज गांव सींऊ व पालर आदि में सदियों बाद भी घराटों का वजूद कायम है।
बिना सरकारी मदद अथवा ऋण के लगाए गए यह घराट कुछ परिवारों के लिए स्वरोजगार का साधन भी बने हुए हैं। नदी-नालों के साथ बसे गांव में हालांकि बिजली की चक्कियां होने के साथ-साथ आसपास के कस्बों से ब्रांडेड कंपनियों के आटे की सप्लाई भी होती है, मगर अधिकतर ग्रामीण अपने अनाज घराट में ही पिसवाना पसंद करते हैं।
गांव सीऊं के घराट मालिक रघुवीर सिंह ने बताया कि, कई पीढ़ियों से घराट उनके परिवार की आय का मुख्य जरिया बना हुआ है। घराट के अलावा हालांकि उनका परिवार अदरक आलू व टमाटर जैसी नकदी फसलें भी उगाता है। मगर जमीन कम होने के चलते आमदनी का मुख्य साधन घराट ही बना हुआ है।
रघुवीर सिंह ने बताया कि आजादी के बाद 1950 में उनके दादाजी को घराट का पट्टा मिला था। अब तक तहसील कार्यालय संगड़ाह अथवा अथवा नंबरदार को इसका राजस्व जमा करवाते हैं। उधर सुरेंद्र सिंह ने कहा कि इस दौर में उनके धंधे में पहले जैसी कमाई नहीं रही, मगर कम लागत अथवा खर्चे का पेशा होने के चलते वह परंपरा को जारी रखे हुए हैं।
दुकानों पर मिलने वाले ब्रांडेड कंपनियों के आटे के मुकाबले घराट के आटे के दीवाने इसका स्वाद बेहतरीन बताते हैं। तो वहीं घराट में पिसा अनाज भी ज्यादा गुणकारी होता है। घराट में पत्थर धीमी गति से घूमते हैं, जिस कारण अनाज के पौष्टिक तत्व खराब नहीं होते। क्षेत्र में घराट में आनाज गेहूं, मक्की, जौ, सत्तू शावक, हल्दी आदि पिसवाते है जबकि घराट का वजूद कायम है |