स्वास्थ्य सेवा रही ‘कराह’
ददाहू। विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थली रेणुकाजी का देवभूमि हिमाचल के पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र में बेहद महत्व है, हर वर्ष यहां अंतर्राष्ट्रीय मेला आयोजित होता है, बड़ी संख्या में श्रद्धालु, सैलानी वर्ष भर आते रहते हैं। इस तरह धार्मिक व पर्यटन से सरकार को खूब कमाई हो रही है, लेकिन कंजूसी का हाल यह है कि रेणुकाजी में बड़ी जन धर्म दबाव में सरकार ने ज एकमात्र आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी खोली है उसे भी 3-4 के चक्रव्यूह में फंसा रखा है, स्वास्थ्य सेवाएं इलाज की बजाय स्वयं कराह रही हैं। डिस्पेंसरी खुलने पर इससे लाभांवित होने की बड़ी उम्मीद से जो लोग (मरीज) खुशी जाहिर कर रहे थे, अब निराशा में हैं।
होंगे भी क्यों नहीं, यहां डाक्टर की सेवाएं हफ्ते में 4 दिन उपलब्ध नहीं हैं, फार्मासिस्ट की कुर्सी खाली हैं, जबसे डिस्पेंसरी अस्तित्व में हैं, यहां फार्मासिस्ट कम ही नजर आता है, जो चतुर्थ श्रेणी 4 दिन डिस्पेंसरी में डाक्टर, फार्मासिस्ट, सफाई कर्मी व अपनी स्वयं की ड्यूटी निभा रहा है, वह भी प्रतिनियुक्ति पर है, पता नहीं कब उस डिस्पेंसरी में चला जाये जहां कि वह स्थायी नियुक्त है।
जो डाक्टर साहिब रेणुका डिस्पेंसरी में 3 दिन के लिए आते हैं उनकी भी स्थायी नियुक्ति या सेवाएं अन्यंत्र ही हैं, उन्हें बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग ने निर्देश दिए हैं कि हफ्ते में 3 दिन रेणुका डिस्पेंसरी देखो और बाकी 4 दिन वहीं जहां स्थायी नियुक्त हों, यानी डाक्टर साहब की सेवाओं के इस तरह बंटवारे से एक साथ दो आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों से स्वास्थ्य लाभ लेने वाले मरीजों की स्थिति त्रिशंकू सी हो चुकी हैं, सरकार लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के दावे करते थकती नहीं, वह एक आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी को स्थायी तौर आयुर्वेद डाक्टर उपलब्ध करवाने व लोगों को पूरे हफ्ते भर इलाज की सुविधा देने में असमर्थ क्यों हैं यह लोगों की समझ में नहीं आ रहा है, जो कि इस उम्मीद से कि शायद डाक्टर साहब होंगे, इलाज के लिए रेणुका जी डिस्पेंसरी में आते हैं लेकिन वहां डाक्टर फार्मासिस्ट की बजाय सिर्फ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को सेवारत देखते हैं तो उनकी बीमारी बढ़ जाती है, उस कष्ट से जो कि यहां आने में लगी थकान व डाक्टर के न होने की सूचना से उपजी मानसिक पीड़ा से उन्हें अनचाहे मिलता है, रेणुका जी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी पर श्रद्धालु पर्यटक ही नहीं वह ग्रामीण आबादी ज्यादा निर्भर है जो दूर दराज में बसी है, जिसे कि इस डिस्पेंसरी में इलाज के लिए आने की खातिर अपनी रोजी रोटी भी दाव पर लगाने की चुनौती अलग झेलनी पड़ती है। उसे 3-4 के चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है। इससे बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के सरकार के दावों की फजीहत भी कम नहीं होती।
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Saturday, April 20