नाहन। राजनीतिक घटनाक्रम बदल जाते हैं। कोई पद के लिए गोटियां फिट करता रहता है तो किसी को बिन मांगे सब मिल जाता है। शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद भी इन्हीं में से एक हैं। अपने राजनीतिक जीवन में निर्विवादित रहे सुरेश कश्यप ने कभी न तो पद मांगा और न ही टिकट। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में उनके सितारे बुलंदियों पर रहे। विधायक से सांसद बनें और अब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी। उनके नाम कई रिकार्ड भी जुड़ गए। सिरमौर से वह भाजपा के पहले सांसद बने तो एससी वर्ग से भाजपा का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का रिकार्ड भी उनके नाम ही दर्ज हुआ।
हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता गंगू राम मुसाफिर को पटकनी देने वाले सुरेश कश्यप की प्रदेश अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से नजदीकियां बताई जा रही हैं। लोकसभा चुनाव में टिकट हो या प्रदेश अध्यक्ष का पद, उनका नाम संभावित चाहवानों की लिस्ट में नहीं रहा। लोकसभा चुनाव के दौरान भी हवा का रुख अंतिम दौर में ऐसा मुड़ गया कि सिटिंग सांसद वीरेंद्र कश्यप का टिकट काटकर पार्टी ने उनके नाम पर मुहर लगा ली। इस बार भी ऐसा ही हुआ। प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में चल रहे नामों के बीच उनका जिक्र तक नहीं था। लेकिन, अचानक हुई नियुक्ति ने सभी को चौंका दिया।