देश में 80 फ़ीसदी इंजेक्शन आपूर्ति करने में सक्षम है प्रदेश की फार्मा यूनिट
नाहन (हिमाचलवार्ता)। कोरोनावायरस की चपेट में आने वाले व्यक्ति के लिए एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर के निर्माण को लेकर सवालिया निशान लग रहे हैं। देश में कोरोना के चलते अब भयावह स्थिति पैदा हो गई है। जिसके चलते रामबाण साबित हो रही रेमडेसिविर दवा की भी भारी कमी महसूस की जा रही है। बावजूद इसके अभी तक केंद्र सरकार पेटेंट एक्ट की धारा 66 के तहत विशेषाधिकार प्रयोग करते हुए सक्षम फार्मा यूनिट को डीसीजीआई से हरी झंडी नहीं दिला पाई है।
हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि हिमाचल प्रदेश की तीन फार्मा यूनिट इस दवा का निर्माण कर रही थी। मगर इन तीनों दवा कंपनियों को केवल एक्सपोर्ट के निर्माण की परमिशन थी। देश में एक तरफ आपदा का संकट है तो वही सरकार पहले से दवा बना रही कंपनियों पर नियमों की तलवार चला रही है। ऐसे में सरकार की मंशा पर सवाल तो उठता ही है तो वही लोगों की जान को लेकर सरकार कितनी गंभीर है यह भी नजर आ रहा है।
बता दें कि गिलेड साइंसेज बेंगलुरु में अपने पेटेंट के एकाधिकार पर इस दवा का निर्माण कर रही थी। दवा की उपयोगिता को लेकर यूएसए ने पहले से ही गिलेड साइंसेज का पूरा स्टॉक 3 महीनों के लिए एडवांस में ही खरीद लिया है। तो वही ग्लोबल फार्मा मायलान देश में रेमडेसिविर दवा से नाम से इसे बाजार में उतारा है। बताना यह भी जरूरी है कि भारतीय पेटेंट एक्ट के क्लाज नंबर 92 के तहत भारत सरकार को देश में दवा निर्माण किए जाने को लेकर विशेषाधिकार प्राप्त है।
लिहाजा भारत सरकार का क्लाज नंबर 92 और देश पर आई आपदा की स्थिति में तमाम करार को रद्द करते है।