नाहन राजीव कुमार 09जनवरी {हिमाचलवार्ता }:-सिखों के 10वें और अंतिम धर्म गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर आज देश-दुनिया में सिख समुदाय के लोग प्रभात फेरी निकालते हैं. गुरुद्वारों में शबद कीर्तन का आयोजन और गुरबानी का पाठ किया जाता है. सिखों के इतिहास के सबसे महान योद्धा माने जाने वाले गुरु गोबिंद सिंह की वीरता की कहानियां आज भी लोगों को याद हैं. सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी की आज जयंती है. उनका जन्म पटना के साहिब में हुआ था. इनके पिता सिखों के दसवें गुरु तेगबहादुर थे. साल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था. कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था. गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं
5 चीजों को बनाया सिखों की शान
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था. सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था. इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है. गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान,सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है.गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी. साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी. गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी. उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था. कहा जाता है है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी. इस लिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था.