नाहन (हिमाचल वार्ता न्यूज) :- सिरमौर जिला के चूडेश्वर लोक नृत्य दल द्वारा किए जाने वाले डगैली कहलाने वाले हैलकेट ट्रेडीशनल डांस को भारत के अलावा विदेशों मे भी लोग काफी पसंद कर रहे है। लोक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पांचवी रात डायन डांस करती है और कुछ गांव मे लोग भी सांकेतिक नृत्य करते है।
पद्मश्री विद्यानंद सरैक के सांस्कृतिक दल द्वारा इस नृत्य को और आकर्षक बनाया गया है। चुड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल के संचालक जोगिंद्र हाबी ने कहा कि, उनका उद्देश्य केवल लोक संस्कृति का संरक्षण है और वह कोई अंधविश्वास नही फैलाना चाहते।
हिमाचल के सिरमौर व कुछ अन्य ग्रामीण क्षैत्रों मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दौरान डायन अथवा बुरी आत्माओं को भगाने की डगैली जैसी परम्पराए कायम है। डगैली का अर्थ डायनों का पर्व है और इसे मनाए जाने को लेकर अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं। कुछ क्षेत्रो मे यह डरावना पर्व जन्माष्टमी की रात्रि को तथा कुछ मे इसके 5 दिन बाद मनाया जाता है।
किवदंतियों के अधिकतर इन रातों को डायने, भूत, पिशाच व चुड़ेल आदि नृत्य करते है और कुछ तांत्रिक, साधुओं तथा देवताओ के गुर इन्हे देख भी सकते है। इन दिनों मे डायनों को धारणा के अनुसार खुली छूट होती है और लोग तिंबर व भेखल जैसे कांटेदार पौधों की टहनी पत्तियों से अपने घरों व पशुशालाओं के बाहर सुरक्षा तंत्र बना कर रख लेते है।
कुछ लोग डगैली की रात्रि को सोने से पहले दरवाजे पर खीरा यानि ककड़ी अथवा अरबी के पतो से बने व्यंजन धेंधड़ा को काटकर भी बूरी शक्तियां रोकने की परम्परा निभाते है। चुडेश्वर कला मंच इस अवसर पर डगैली नृत्य भी शूट किया गया। दल के संस्थापक जोगेद्र हाब्बी ने बताया कि दल से जुड़े पदमश्री विद्या नंद सरैक व गोपाल हाब्बी ने शौध के बाद डगैली फोक डांस के लिए ने आकर्षक परिधान, स्क्रिप्ट व फोक गाने तैयार किये।
गत वर्ष से वह इसका मंचन प्रदेश के विभिन्न मेलों मे भी कर चुके हैं। उन्होने कहा की, फ्रासं के फोटोग्राफर एंव शोधकर्ता Charles Freger गत अप्रेल माह मे इसका Photoshoot भी कर चुके हैं और इस नृत्य को विदेशी भी Social Media पर लोग काफी पसंद कर रहे हैं