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    सिरमौर

    देश की रीढ़ ‘‘श्रमिक’’ के लिए मसीहा बना दंपत्ति, अब तक 200 भेजे घर

    By Himachal VartaMay 23, 2020
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    himachal varta

    नाहन। कोरोना ने एक बात देश को बारीकी से ये भी समझाई है कि ऊंची-ऊंची इमारतों का निर्माण व कारखानों में उत्पादन श्रमिकों के दम पर ही संभव है। बावजूद इसके देश की रीढ़ का तिरस्कार किया जा रहा है। इसके विपरीत  नाहन  तहसील के अधीन  आने वाले  मोगीनंद गााँव में रह रहे एक दंपत्ति नागेंद्र सिंह रावल व ममता रावल ने लाॅकडाउन में गरीबों के दुख को अपना समझा है। प्रशासन ने भी दंपत्ति की हौंसला अफजाई की है। अब तक चार बसें उत्तर प्रदेश के बरेली भेजी जा चुकी हैं। इसके अलावा लखनऊ भी एक बस भेजी गई है। एक छोटे वाहन के माध्यम से 7 श्रमिकों को बिजनौर पहुंचाया गया।

    यही नहीं करीब एक माह से परिवार श्रमिकों को निशुल्क राशन वितरण करने में भी लगा हुआ है। साथ-साथ हजारों की तादाद में मास्क भी बांटे जा चुके हैं।

    नागेंद्र सिंह रावल से जब पूछा गया कि क्या आप खर्च वहन कर रहे हैं तो जवाब में कहा कि भगवती मां करा रही है। बातों-बातों में स्वीकार करना पड़ा कि वो ओर उनकी पत्नी लगातार प्रयास में जुटे हैं कि किसी भी श्रमिक को कोई दिक्कत न आए। नागेंद्र सिंह की पृष्ठभूमि आरएसएस से जुड़ी हुई है, विधानसभा चुनाव के दौरान सिरमौर के प्रभारी भी रहे। हाल ही के लोकसभा चुनाव में नागेंद्र सिंह को हरियाणा के कुछ संसदीय क्षेत्रों का प्रभारी बनाया गया था। जबकि पत्नी ममता रावल इस समय एलएडी में लेखाधिकारी के पद पर तैनात हैं।

    दंपत्ति द्वारा नव पूर्णिमा सोसायटी का संचालन भी किया जाता है। बातचीत के दौरान नागेंद्र सिंह ने बताया कि बरेली व लखनऊ की प्रति बस का खर्चा 50 से 60 हजार के बीच आया। हरेक बस में 39 श्रमिकों को भेजा गया। उन्होंने कहा कि सबको एक दिन संसार त्यागना है। क्यों न कुछ ऐसा करके जाएं कि दुनिया छोड़ने के बाद आपको याद किया जाता रहे। उनका कहना था कि भगवती के आशीर्वाद से आमदनी का साधन रैंटल इन्कम है। वो पूरा दिन ही मानव सेवा को समर्पित करने का प्रयास करते हैं। उनका कहना था कि लाॅकडाउन में श्रमिकों की सेवा का मौका इस कारण मिला, क्योंकि प्रशासन ने भी सहमति दी। अन्यथा, प्रशासन के सहयोग के बगैर वो चाहकर भी इन परिस्थितियों में कुछ नहीं कर पाते।

    कुल मिलाकर दंपत्ति की इस तरह की सोच को सलाम किया जाना चाहिए। राजगढ़ व बद्दी से भी ऐसे मामले सामने आए थे, जब दुकान मालिकों ने लाखों रुपए का रैंट माफ करने का ऐलान किया था

     कोरोना ने एक बात देश को बारीकी से ये भी समझाई है कि ऊंची-ऊंची इमारतों का निर्माण व कारखानों में उत्पादन श्रमिकों के दम पर ही संभव है। बावजूद इसके देश की रीढ़ का तिरस्कार किया जा रहा है। इसके विपरीत  नााा नाहन  तहसील के अधीन  आने वाले     मोगीनंद गााँव में रह रहे एक दंपत्ति नागेंद्र सिंह रावल व ममता रावल ने लाॅकडाउन में गरीबों के दुख को अपना समझा है। प्रशासन ने भी दंपत्ति की हौंसला अफजाई की है। अब तक चार बसें उत्तर प्रदेश के बरेली भेजी जा चुकी हैं। इसके अलावा लखनऊ भी एक बस भेजी गई है। एक छोटे वाहन के माध्यम से 7 श्रमिकों को बिजनौर पहुंचाया गया।

    यही नहीं करीब एक माह से परिवार श्रमिकों को निशुल्क राशन वितरण करने में भी लगा हुआ है। साथ-साथ हजारों की तादाद में मास्क भी बांटे जा चुके हैं।

    नागेंद्र सिंह रावल से जब पूछा गया कि क्या आप खर्च वहन कर रहे हैं तो जवाब में कहा कि भगवती मां करा रही है। बातों-बातों में स्वीकार करना पड़ा कि वो ओर उनकी पत्नी लगातार प्रयास में जुटे हैं कि किसी भी श्रमिक को कोई दिक्कत न आए। नागेंद्र सिंह की पृष्ठभूमि आरएसएस से जुड़ी हुई है, विधानसभा चुनाव के दौरान सिरमौर के प्रभारी भी रहे। हाल ही के लोकसभा चुनाव में नागेंद्र सिंह को हरियाणा के कुछ संसदीय क्षेत्रों का प्रभारी बनाया गया था। जबकि पत्नी ममता रावल इस समय एलएडी में लेखाधिकारी के पद पर तैनात हैं।

    दंपत्ति द्वारा नव पूर्णिमा सोसायटी का संचालन भी किया जाता है। बातचीत के दौरान नागेंद्र सिंह ने बताया कि बरेली व लखनऊ की प्रति बस का खर्चा 50 से 60 हजार के बीच आया। हरेक बस में 39 श्रमिकों को भेजा गया। उन्होंने कहा कि सबको एक दिन संसार त्यागना है। क्यों न कुछ ऐसा करके जाएं कि दुनिया छोड़ने के बाद आपको याद किया जाता रहे। उनका कहना था कि भगवती के आशीर्वाद से आमदनी का साधन रैंटल इन्कम है। वो पूरा दिन ही मानव सेवा को समर्पित करने का प्रयास करते हैं। उनका कहना था कि लाॅकडाउन में श्रमिकों की सेवा का मौका इस कारण मिला, क्योंकि प्रशासन ने भी सहमति दी। अन्यथा, प्रशासन के सहयोग के बगैर वो चाहकर भी इन परिस्थितियों में कुछ नहीं कर पाते।

    कुल मिलाकर दंपत्ति की इस तरह की सोच को सलाम किया जाना चाहिए। राजगढ़ व बद्दी से भी ऐसे मामले सामने आए थे, जब दुकान मालिकों ने लाखों रुपए का रैंट माफ करने का ऐलान किया था

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