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    हिमाचल प्रदेश

    हिमाचल बना स्वावलंबी, बारबर्स(नाइयों), ब्यूटी पार्लर्स के लिए खुद बनाएगा जैविक एप्रन

    By Himachal VartaMay 26, 2020
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    नाहन। वैश्विक महामारी में देश को स्वावलंबी बनाने का सपना खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देख रहे हैं। पीपीई व टैस्टिंग किट के अलावा वेंटिलेटर भी देश ने बनाने शुरू कर दिए हैं। इसी क्रम में हिमाचल ने भी खुद को अपने पांव पर खड़ा करने का प्रयास किया है। औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब स्थित हिमालयन ग्रीन्स ने बेहद ही रियायती दरों पर बार्बर्स व ब्यूटी पार्लर्स के लिए जैविक एप्रन का उत्पादन शुरू कर दिया है। यही नहीं टैक्सी चालक भी ऐसे सीट कवर हासिल कर सकेंगे, जिन्हें एक बार इस्तेमाल के बाद फेंका जा सकता है।

    दीगर है कि नाईयों की दुकानों के अलावा ब्यूटी पार्लर्स में संक्रमण की आशंका के चलते सरकार ने कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें एप्रन का इस्तेमाल सबसे जरूरी बनाया गया है। अब आप सोच रहे होंगे कि जैविक एप्रन व सीट कवर क्या हैं। दरअसल, एप्रन का उत्पादन नाॅन वोवन विधि से भी हो सकता है, मगर यहां ऐसा इसलिए नहीं किया जाएगा क्योंकि नाॅन वोवन प्रणाली स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसके अलावा छेद होने की स्थिति में संक्रमण का खतरा भी कायम रह सकता है। वहीं जैविक एप्रन एक ऐसी प्रणाली है, जिससे न ही स्वास्थ्य को नुकसान होने की गुंजाइश होती है, साथ ही संक्रमण का खतरा न के बराबर ही होता है।

    अहम बात यह है कि जैविक एप्रन व सीट कवर की दरें भी काफी कम हैं। मात्र 18 रुपए में एक एप्रन हासिल किया जा सकता है। इसके अलावा कैप का उत्पादन भी किया जा रहा है, इसकी न्यूनतम कीमत 10 रुपए तय की है। इसके अलावा टैक्सी सीट कवर मात्र 70 रुपए में मिलेगा। टैक्सी चालक द्वारा इन कवर का इस्तेमाल सवारियां सफर के दौरान कर सकती हैं, जिनके गंतव्य पर पहुंचने के बाद कवर को थ्रो किया जा सकता है। दीगर है कि हिमालयन ग्रीन्स के इन उत्पादों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी स्वीकृति प्रदान की है। ये प्रोडक्ट 3 से 6 माह के भीतर स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं, जबकि कपड़े जैसा दिखने वाले नाॅन वोवन प्लास्टिक प्रोडक्ट का कचरा सौ साल तक भी नष्ट नहीं होता। स्पष्ट शब्दों में समझे तो प्रदूषण का दुश्मन है।

     

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