मासूम बच्चे का जीवन बच गया!
नाहन। आपको लाजमी तौर पर याद होगा, प्रशासन की कोशिश पर पायलट राम सिंह ने 18 अप्रैल को एक मासूम बच्चे को कैसे 320 किलोमीटर दूर सवा तीन घंटे में गुरुग्राम पहुंचा दिया गया था, ताकि दो दिन के मासूम बच्चे को तत्काल ही एमरजेंसी में उपचार मिल जाए। अब इस मामले में एक सुकून देने वाली जानकारी सामने आई है। गुरुग्राम के आर्टेमिस अस्पताल के पैडिट्रिक कार्डिक सर्जरी के नामी चिकित्सक असीम आर श्रीवास्तव ने करिश्मा कर दिखाया है। चंद रोज निगरानी में रखने के बाद मासूम बच्चे की ओपन हार्ट सर्जरी की गई।
गरीब परिवार के लिए रविवार का दिन उस समय एक बार फिर राहत देने वाला आया, जब अस्पताल ने मासूम को वेंटिलेटर की स्पोर्ट से भी हटा दिया। दीगर है कि समूचे उत्तर भारत में नवजात बच्चों की सर्जरी केवल आर्टेमिस अस्पताल में ही संभव हो पाती है। यही कारण था कि मासूम बच्चे को नाहन से सीधे ही गुरुग्राम भेजा गया। मेडिकल कॉलेज में डॉ. दिनेश बिष्ट ने भी मासूम के जीवन को बचाने के लिए अपने स्तर पर कोई कोर-कसर नहीं रखी थी।
कौलावालांभूड के रहने वाले माता-पिता जिन्होंने शायद ही किसी बड़े शहर को देखा होगा, उनके बच्चे को प्रशासन की इम्दाद मिलने से बेहतरीन उपचार मिल रहा है। यह भी संभव है कि गरीब माता-पिता शायद सपने में भी इसकी कल्पना नहीं कर सकते थे। एक ऐसी कड़ी बनी, जो आज रंग ला रही है।
इसकी शुरूआत एसडीएम विवेक शर्मा से हुई, जिन्होंने मामले को ज़िलाधीश डॉ. आरके परुथी के संज्ञान में लाया। रैडक्रॉस सोसायटी की एंबूलेंस के सारथी राम सिंह बने। लगभग सवा तीन घंटे में माता-पिता सहित मासूम को गुरुग्राम पहुंचा दिया। पहुंचते ही डॉ. श्रीवास्तव ने अपने स्तर पर हर कोशिश शुरू कर दी। शुक्रवार को एक जटिल सर्जरी की गई। आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि चार-पांच दिन के मासूम बच्चे की ओपन हार्ट सर्जरी कितनी कठिन होती होगी।
जब डॉ. श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने वेंटिलेटर की स्पोर्ट हटने तक इंतजार करने का आग्रह किया। अब वेंटिलेटर हटे भी दो दिन हो चुके हैं। हालांकि डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि बच्चे की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन पूरी रिकवरी में वक्त लगेगा। उधर सिरमौर के उपायुक्त डॉ. आरके परुथी ने मासूम बच्चे की ओपन हार्ट सर्जरी सफल होने पर खुशी जताई है। साथ ही शिशु के जल्द घर लौट आने की कामना भी की है।
क्या बोले डॉ. श्रीवास्तव…
डॉ. असीम आर श्रीवास्तव का कहना है कि बच्चे का जीवन एक ऐसी धमनी पर निर्भर कर रहा था, जो जन्म के कुछ दिन तक ही रहती है। लिहाजा, बच्चे का जीवन बचाने में समय एक बड़ी पाबंदी था। अगर इस धमनी से रक्त प्रवाह रुक जाता तो उसे बचा पाना काफी मुश्किल हो जाता। उनका कहना था कि नाहन में डॉ. दिनेश बिष्ट द्वारा शिशु को तुरंत ही सही तरीके का उपचार दिया गया। उनका कहना था कि सामान्य तौर पर इस तरह की सर्जरी का खर्च 5 से 6 लाख रुपए तक आता है। चूंकि माता-पिता गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं, लिहाजा अस्पताल ने ही अधिकतर खर्च को वहन किया है।
उन्होंने कहा कि अतिरिक्त वित्तीय मदद एक एनजीओ के माध्यम से भी पहुंची है, जो दिल की बीमारी से ग्रसित बच्चों की मदद करती है। उनका कहना था कि जब बच्चा अस्पताल पहुंचा तो वो जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था। धमनी भी करीब-करीब बंद होने को थी। किडनी फेल होने की भी पूरी आशंका हो गई थी। तुरंत ही शिशु की धमनी को खोलने का ट्रीटमेंट शुरू किया गया। आईसीयू में रखने के बाद जब शिशु की स्थिति सुधरी तो ओपन हार्ट सर्जरी की गई। उन्होंने कहा कि तीन दिन तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद शिशु रिकवर हो रहा है, लेकिन उसे 6 से 12 महीने तक उपचार की आवश्यकता पड़ेगी।
डॉ. श्रीवास्तव का यह भी कहना था कि एक ऑपरेशन की ओर आवश्यकता होगी। इसके बाद बच्चा सामान्य जीवन जी सकेगा। डॉ. श्रीवास्तव ने बेहद ही भावुक तरीके से कहा कि वो भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि माता-पिता स्वस्थ्य बच्चे को लेकर घर लौटें।