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    Home»हिमाचल प्रदेश»जिला सिरमौर से भी जुड़े हैं रिश्वत कांड मामले के तार!
    हिमाचल प्रदेश

    जिला सिरमौर से भी जुड़े हैं रिश्वत कांड मामले के तार!

    By Himachal VartaMay 23, 2020
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    himachal varta

    सिरमौर का एजेंट और कमीशन की दलाली में क्या आएंगे नजर और भी चेहरे
    नाहन। स्वास्थ्य निदेशक के ऑडियो वायरल मामले के बाद जिला सिरमौर में भी खलबली मची हुई है। भले ही एफआईआर इस मामले में दर्ज हो चुकी हो मगर इस पूरे नेटवर्क में बड़े चेहरों को बेनकाबी का डर सताने लग पड़ा है। सवाल यहां यह भी उठता है कि नाहन मेडिकल कॉलेज में 32000 रुपए प्रति फ्लैट का मासिक किराया तो कमीशन का खेल ऊपर तक माना जाता है।

    जबकि इस शहर में सबसे बेहतर थ्री रूम सेट 10000 रुपए से अधिक किराए पर नहीं है। इसके अलावा सरकारी नल और बड़ी वाटर स्कीमें नाहन शहर को मिली हैं तो 90000 पर हर महीने का पानी हॉस्टल और किराए पर रह रहे डॉक्टरों के लिए क्यों खरीदा जाता है। तीन टैंकर प्रतिदिन पानी के डाले जाते हैं और इन दिनों तो स्टूडेंट भी नहीं है। तो पानी की दलाली का पैसा किस किस के पास जाता होगा।

    अब हैरानी का विषय तो यह भी है कि यह विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के एक बड़े कद्दावर नेता का माना जाता है। मेडिकल कॉलेज में फर्नीचर की खरीद-फरोख्त इक्विपमेंट्स की खरीद-फरोख्त में जो कमेटी बनाई जाती थी उस बैठक में उन लोगों के भी दस्तखत कर दिए जाते थे जो मेडिकल कॉलेज में उस दिन आए ही नहीं होते थे। अनियमितताओं और सुविधाओं को लेकर ऐसा पहली बार हुआ होगा कि नाहन मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस प्रशिक्षु डॉक्टरों ने हड़ताल की थी।

    इन छात्रों का यह आरोप था कि यह पूरा का पूरा मेडिकल कॉलेज केवल एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए खोला गया है न कि छात्रों की पढ़ाई के लिए। अब सवाल यह भी उठता है कि रिश्वत कांड में फंसे स्वास्थ्य निदेशक से पहले भी इस कुर्सी पर कोई और बैठे थे। अब इनकी किस्मत खराब थी जो इनका ऑडियो वायरल हो गया। जबकि नाहन मेडिकल कॉलेज की बड़ी धांधलीओं में बड़े खेल खेले गए थे उसमें की गई जांच का अभी तक खुलासा सरकार क्यों नहीं कर पाई है।

    अब जो सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है जिस कथित चंडीगढ़ की कंपनी पर दयानत दारियां बरसाई गई हैं। उसका संबंध नाहन मेडिकल कॉलेज और इसके अलावा सरकारी दवाओं की खरीद से भी जुड़ा हो सकता है। इतना तो तय है कि बिना किसी बड़े संरक्षण के कोई कार्य नहीं हो सकता है। विपक्ष निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराने की मांग कर रहा है। इएसके पीछे कमीशन में हिसाब किताब की गड़बड़ी मानी जा रही है। सवाल तो यह भी उठता है कि स्वास्थ्य विभाग में और मेडिकल कॉलेज में अकाउंट सेक्शन में काम करने वाले लोगों के ऐसर्टस में बेतहाशा वृद्धि कैसे हो गई है। एक अकेले निदेशक तक यह मामला सीमित नहीं है। देखना तो यह होगा कि जांच एजेंसी इस पूरी चेन में मुख्य कड़ी तक कैसे पहुंच पाती है। ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री के लिए अब यह भी जरूरी हो जाता है कि ऐसे लोगों से जल्द किनारा किया जाए ताकि जनता ने जो उनका विश्वास है वह बना भी रहे।

    यह तो तय है कि सेवानिवृत्ति से पहले कोई भी सर्विसमैन इतना बेखौफ होकर कार्य नहीं करेगा जब तक उसके पीछे किसी बड़े व्यक्ति का हाथ होगा। इस बड़े व्यक्ति के संबंध दलाली की सियासत में नए तो है नहीं। संकट के समय में घड़ियाली आंसू बहा कर राहत कोष की आड़ में ना जाने और क्या-क्या खेल खेले गए होंगे यह तो वक्त ही बताएगा। मगर यह भी देखना होगा कि करोड़ों का सैनिटाइजर बेचने वालों ने सरकार को कितना पैसा टैक्स के रूप में दिया है। या फिर कुछ और तरीकों के तहत इसमें भी खेल खेला गया है।

    बड़े पैमाने पर घटिया पीपी किट कोरोना वॉरियर्स के नाम पर किस से खरीदी गई हैं यह भी देखना होगा। हालांकि इस धंधे के तार प्रदेश के अन्य जिलों से भी हो सकते हैं मगर जिला सिरमौर से तो निश्चित है कि तार बड़ी गहराई तक जुड़े हैं।

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