बीजेपी का डैमेज कंट्रोल फार्मूला! मगर ढाई साल के गुब्बार का क्या?
ढाई साल के लिए कांटो भरा ताज आखिर पहने का कौन अपने सर, धवाला की ज्वाला में अब कौन-कौन जलाएगा मशाल, संगठन सरकार दोनों की एक पर मार क्या बदलेगा कोरोना के बाद राजनीतिक सिनेरियो
नाहन। धवाला की भड़की ज्वाला के बाद भले ही केंद्रीय दबाव में कांगड़ा के भाजपा विधायकों ने अपनी जुबान बदल ली हो मगर अब दबी जुबान में भाजपा की अंदरूनी जंग तेज होती नजर आ रही है।
वन मैन आर्मी रमेश धवाला कब तक अपनी कही गई बात पर कायम रहेंगे यह तो कह नहीं सकते। मगर अब ढाई साल सरकार के पास शेष बचे हैं ।ऐसे में ढाई साला का ताज यानि कांटों वाला ताज पहने गा कौन। क्योंकि ढाई साल में कुछ समय तो कोरोना में बीत जाएगा 6 महीने विभाग को समझने में लगेंगे। और अपने क्षेत्र मैं विकास न करवा पाने को लेकर आगे के रास्ते भी बंद हो जाएंगे।
अब यदि बात की जाए सिरमौर की तो आने वाला समय कांग्रेस के लिए शुभ संकेत दे रहा है। ना मंत्री ना संगठन में हिस्सेदारी यह हालत है अब सिरमौर की। और यह भी बता दें कि जो लोग संगठन की खातिर सरकार में बैठे हैं उनकी दोस्ती मंडी से है ना कि सिरमौर से।
काम की स्थिति देखें तो पच्छाद की हालत क्षणिक सी उपचुनाव में देखने को मिली थी। मगर अब विकास पर लगभग वादाखिलाफी लोगों को रास नहीं आ रही है। इसी प्रकार श्री रेणुका जी शिलाई पांवटा साहिब और नाहन का भी विकास बहुत धीमा पड़ गया है।
नाहन में अप्रत्याशित विकास की रूपरेखा परवान चढ़ रही थी। तो यहां डॉक्टर बिंदल अपनी ही पार्टी में गुटबाजी का शिकार हो गए।सुखराम चौधरी की पूर्व मुख्यमंत्री से नजदीकियां और चौधरी वर्सेस ठाकुर जातीय समीकरण में कांगड़ा से लेकर सिरमौर तक संगठन की अंतर कलह बीच के कई जिलों को अपनी चपेट में जल्द लेना शुरू कर सकती है।
कह सकते हैं जैसे कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है तो वैसे ही बगैर एहसास कराते हुए धवाला की ज्वाला की आंच अब तेज होती नजर आ रही है।वैसे देखा जाए तो रमेश धवाला कह तो सही रहे हैं।
क्योंकि आज जो कांगड़ा कुछ भाजपा विधायकों ने अपनी बयानबाजी बदली है। उसे तो यह लगभग तय हो चुका है कि प्रदेश में एक ही प्रमुख व्यक्ति संगठन भी चला रहा है और सरकार भी चला रहा है।
अफसरशाही पकड़ ना होना, चुने हुए नुमाइंदों की अनदेखी कहीं ना कहीं भाजपा की संगठन पर अब मौजूदा समय कमजोर पकड़ हाशिया खींचते नजर आ रही है। ढाई साल के लिए जिस ने मंत्री पद लिया वह समझो अपने विधानसभा क्षेत्र में बुरी तरह से हारेगा। और ढाई साल में वह विभाग को संभालेगा या फिर अपने क्षेत्र का विकास कराएगा ।
तो कह सकते हैं ग्रह चाल कम से कम भाजपा के पक्ष में तो फिलहाल कहीं नजर नहीं आती। तो वही विपक्ष में बैठी कांग्रेस किसको मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर रही है इसको लेकर भी कम से कम वोटर जिस पशोपेश में है कि कहीं कोई तीसरा मोर्चा इस बार फायदा ना उठाएं।
जब तक संगठन की कमान प्रदेश में डॉक्टर के पास थी तब तक सबको कभी भी इंजेक्शन लगने का भय था।तो वहीं अब संगठन के अंदर की बातें भी मीडिया तक पहुंचने पर हाईकमान काफी नाराज नजर आ रहा है।
बस अब तो कोरोना के खत्म होने का इंतजार है क्योंकि इसके बाद प्रदेश में राजनीति का सिनेरियो बदला हुआ नजर आएगा।कमोबेश सोलन सिरमौर और ऊपरी हिमाचल जिस जोश खरोश के साथ भाजपा को स्वतंत्र मूड से समर्थन दे रहा था मगर बिगड़े हालातों के बाद इन दोनों जिलों के साथ साथ प्रदेश के अन्य जिलों में भी संगठन को लेकर विरोध मुखर हो रहा है।
ऐसे में मुख्यमंत्री का प्रदेश में पॉलिटिकल एडवाइजिंग तो ठीक है मगर जो केंद्र की तरफ से धवाला प्रकरण को लेकर डैमेज कंट्रोल किया जा रहा है वह प्रदेश में पार्टी के लिए घातक भी हो सकता है।पहली बात तो यह है कि लंच डिप्लोमेसी चल रहे मौजूदा हालातों को लेकर बनती ही नहीं थी।
क्योंकि ढाई साल का गुब्बार जिन हालातों में फूटा है अब जल्दी से स्थिति काबू में आने वाली तो कहीं भी नजर नहीं आती है।अब जो भी कांगड़ा की ओर से अन्य विधायकों के बयानों में बदलाव आया है वह केवल जग दिखावा हो सकता है।
मगर जो दिल पर लगी है उसकी भड़ास तो निकलेगी ही। अब यदि प्रदेश अध्यक्ष कांगड़ा से हो या फिर मंत्रिमंडल में जगह तो फिर और भी जिला है जो संगठन और सरकार में लंबे समय से हाशिए पर चल रहे हैं।जाहिर है कि इन सबके कंट्रोल की चाबी जिसके पास थी उस ताले में जंग लगाने की तैयारियां हो रही है।
अब देखना यह होगा कि बाकी के जो ढाई साल बचे हैं वह मुख्यमंत्री कितना तनाव व दबाव मुक्त होकर काट पाएंगे। क्योंकि अब जनता भाषण से नहीं मुद्दों पर जवाब मांगेगी।