पूर्व मुख्यमंत्री समर्थक मंत्री रहे एक नेता जिस कंधे का इस्तेमाल कर फिर से राजनीति के मैदान में जमीन तलाश रहे हैं उसको लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। कभी अपने ही पार्टी के नेता को नगर परिषद की कुर्सी से हटाया जाता है। तो कभी एक बैंक के अध्यक्ष पद पर राजनीति होती है। यही नहीं हाल ही में सोलन के सफाई कर्मियों के बवाल पर माननीय सहित पत्रकारों ने भी समझाया मगर बवाल सिर्फ रेस्ट हाउस में बैठे एक नेता के इशारे पर ही खत्म हुआ।
आखिर सवाल ये उठता है कि इन सब प्रकरणों को लेकर सक्रिय हो रहा दल साबित क्या करना चाहता है। भाजपा बनाम भाजपा के इस खेल में व्यापार मंडल की बंदूक में भरकर जो बारूद उगला जा रहा है उस पर सोलन कांग्रेस को पकी पकाई खीर खाने का मौका एक बार फिर मिल जाएगा। हैरानी तो इस बात की भी है कि कथित व्यापार मंडल के कथित प्रधान भाजपा के एक नेता की गोद में बैठे हैं।
मगर उन नेता की सरकार के खिलाफ तरह-तरह के खट कर्म करने पर भी उतारू हैं। प्रशासन भी कथित अध्यक्ष के आगे बेबस नजर आ रहा है। एस डी एम के साथ कथित अध्यक्ष के साथ जो बेखौफ बस नजर आई उसके पीछे कोई तो है जिसके दम पर इनके हौसले बुलंद है।
सवाल यह उठता है कि आखिर कथित नेता हारे हुए नेता को आगे कर साबित क्या करना चाहते हैं। क्योंकि अब सीमेंट के दाम को लेकर के भी कथित चाणक्य के द्वारा जनता का ध्यान सरकार की नाकामी की ओर इंगित किया गया है।
यह तो वही बात हुई हम आपके हैं सनम मगर है बेवफा। वही सोलन में चल रहे भाजपा के संगठन के घमासान को संभवत शीर्ष नेतृत्व देख नहीं पा रहा है। ऐसे में यह तो तय है कि सोलन से भाजपा की झंडी एक बार फिर से 2022 में उतर सकती है।
जो जानकारी सूत्रों से मिली है उससे एक सौदा का भी पता चला है। सक्रिय हो रहे भाजपा के कथित गुट के द्वारा नगर निकाय के चुनाव में ऐसे चेहरे चुने जा रहे हैं जो फिलहाल भाजपा बैनर पर मैदान में दर्शाया जाएंगे। मगर 2022 के चुनाव में कांग्रेस से टिकट पाने की इच्छा पाले पर्दे के पीछे खेल खेलने वाले नेता अपनी जीत सुनिश्चित कर सकेंगे।
अब यहां पर यह भी समझ लेना जरूरी है कि यह सब खेला क्यों जा रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह बिंदल समर्थक माने जाने वाले भाजपा के मजबूत पिलर को ध्वस्त किया जाना रणनीति का हिस्सा है। जबकि उनमें से अधिकतर कट्टर संघ विचारधारा वाले हैं और संगठन के प्रति ही वे निष्ठा रखते हैं। यही वजह है कि इतने प्रकरण हो जाने के बावजूद भी इस गुट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ कोई बयान बाजी नहीं की है।
सवाल यह भी उठता है कि सोलन में जब पार्टी में ही इतना घमासान मचा हुआ है और बड़ी बात तो यह है कि अपने ही दल के लोगों ने पार्टी कार्यालय की जमीन प्रकरण को लेकर जो खेल खेलने का प्रयास किया है उससे भी यह तो स्पष्ट हो चुका है की यह लड़ाई अब थमने वाली नहीं है।
हालांकि जिन्हें बिंदल समर्थक माना जाता है उन्होंने सरकार की प्रतिष्ठा को लेकर खुद को ही दांव पर लगा दिया है। जाहिर है कि वे बिंदल के लिए नहीं बल्कि संगठन के प्रति लॉयल है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदेश में भाजपा नेतृत्व काफी कमजोर है।
जिस तरीके का प्रकरण सोलन में चल रहा है उस पर प्रदेश शीर्ष नेतृत्व अभी तक कोई कार्यवाही कर पाने में भी नाकाम रहा है। अब तो यह कह सकते हैं कि सांप तो मर चुका है और लाठी भी टूटने वाली है। भाजपा नेता क्यों जबरदस्ती एक ऐसे व्यकति को स्थापित करना चाहता है जिसने कांग्रेस की सरकार मे जमकर भाजपा को कोसा धूमल सरकार पर इल्जाम लगाये।