नाहन (हिमाचल वार्ता न्यूज) :- इन दिनों सड़कों पर कच्ची मक्की के भुट्टे लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बने हुए है । भुटटे भुनने वाले की रेहड़ी फहड़ी पर लोग बड़े चाव के साथ मक्की के भुटटे के चटकारे ले रहे हैं । बता दें कि भुट्टे जहां स्वाद व पौष्टिकता से भरपूर है वहीं पर भुट्टे में विटामिन व खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । बरसात के मौसम में बारिश की ठंडी फुहारों में भुट्टे को खाने का बहुत आन्नद आता है। चूल्हे में भूने हुए भुट्टे का अपना ही मजा है । शहरी क्षेत्रों में जहां रेहड़ी-फहड़ी वाले भुट्टे बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं । वहीं पर ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता हैं। बता दें कि अतीत से ही ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का काफी मात्रा में उत्पादन किया जाता रहा है । किसानों का नकदी फसलों के प्रति रूझान बढ़ने से मक्की उत्पादन में कमी आई है । ग्रामीण परिवेश में कच्ची मक्की का उपयोग भुट्टे के अलावा सत्तू व पचैले बनाने के लिए भी किया जाता है । किसानों द्वारा कच्ची मक्की को उबाल कर इसके सत्तू बनाए बनाए जाते हैं जिसका उपयोग विशेषकर गर्मियों के दौरान किया जाता है । इसी प्रकार अतीत में जब बरसात के दिनों में अनाज में कमी हो जाती थी उस दौरान लोग कच्ची मक्की को पीस कर पचैले बनाकर अपना पेट पालते थे जबकि अब पचैले एक प्रसिद्ध पहाड़ी व्यंजन बन चुका है । यही नही घास की कमी होने पर मक्की के टांडे पशुओं को खिलाए जाते हैं
कृषि विभाग राजगढ़ के अनुसार राजगढ़ ब्लाॅक में करीब 2600 हैक्टेयर भूमि पर मक्की की खेती की जाती है जिसमें औसतन 6 हजार मिट्रिक टन उत्पादन होता है । इस वर्ष विभाग द्वारा 110 क्ंिवटल मक्की का बीज किसानों को उपदान पर उपलब्ध करवाया गया ।
क्षेत्र के प्रगतिशील किसान प्रीतम ठाकुंर, देशराज, राकेश कुमार का कहना है कि सर्दियों के दिनों में मक्की की रोटी का उपयोग पहाड़ों में हर घर में किया जाता है क्योंकि मक्की में कार्बोहाड्रेट और आयरन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है और मक्की की रोटी की ताहसीर भी गर्म होती है ।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का में फाईबर काफी मात्रा में उपलब्ध होता है जिसके उपयोग से शरीर में काॅलेस्ट्राॅल स्तर को सामान्य बनने के अतिरिक्त हृदय संबधी रोगों से भी बचाव रहता है । मक्का के दैनिक जीवन में उपयोग से मनुष्य के शरीर में आयरन की कमी भी पूरी होती है ।
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Monday, May 19