नाहन ( हिमाचल वार्ता न्यूज) (लक्ष्य शर्मा):- उद्यान विभाग सिरमौर ने जिला में इस सर्दी के सीजन में डेढ लाख फलदार पौधे वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है जिनमें से करीब 75 प्रतिशत पौधे राजगढ़, संगड़ाह और सरांह ब्लाॅक में किसानो को बांटे जाएंगे । किसानों की मांग के अनुरूप इस आंकड़े में वृद्वि भी की जा सकती है ं। यह जानकारी बागवानी विभाग राजगढ़ के विषय विशेषज्ञ (एसएमएस ) डाॅ0 देवेन्द्र अत्री ने विशेष चर्चा के दौरान दी है।
उन्होने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा बागवानों के लिए यूएसए से सेब की सर्वोतम क्लालिटी के 50 हजार पौधे आयात किए गए हैं । जिनमें मुख्यतः क्रिमसन टोपाज, एंबरोसिया, सिम्मन गाला, प्रायमिर हन्नी क्रिस्प और हन्नी क्रिस्प शामिल है । किसानों को यह पौधे उपदान पर 400 रूपये प्रति पौधा उपलब्ध करवाया जा रहा है जबकि यूएसए से यह करीब आठ सौ रूपये प्रति पौधा विभाग द्वारा आयात किया गया है । इसके अतिरिक्त विभाग द्वारा एक लाख रूट स्टाॅक को वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है । जिन्हें किसानों को उपदान पर एक सौ रूपये प्रति रूट स्टाॅक वितरित किए जाएंगे । यह रूट स्टाॅक विभागीय नर्सरी में तैयार किए गए हैं । बताया कि उद्यान विभाग राजगढ़ के अधीन तीन ब्लाॅक राजगढ़, संगड़ाह और सरांह आते हैं जिनमें पौधे व रूट स्टाॅक उपलब्ध करवाने के लिए स्थान तय किए गए हैं । इसके अतिरिक्त आड़ू, नाशपाती, खुमानी के रूट स्टाॅक भी उपलब्ध है जिन्हें किसानों को 75 रूपये प्रति रूट स्टाॅक उपलब्ध करवाया जा रहा है ।
डाॅ0 अत्री ने बताया कि अमेरिका से आयात किए गए सेब के पौधे सभी समुद्र तल से 4000 से 6000 फुट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्वाधिक उपयोगी माने गए है । सेब के पौधे तीसरे अथवा चैथे साल में फल को सैंपल देने लग जाते हैं अर्थात विभाग द्वारा दो साल वाले सेब के पौधे वितरित किए जा रहे है जोकि दो साल उपरांत सैंपल दे देगें। उन्होने बताया कि विश्व बैंक के सौजन्य से 1100 करोड़ रूपये की हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना विकसित की जा रही है जिसके तहत बागबानी को बढ़ावा देने के लिए अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित किए जा रहे हैं ताकि किसानों का रूझान बागवानी की ओर बढ़े और बागवानी आय का अतिरिक्त साधन बन सके ।
बता दें कि राजगढ़ क्षेत्र में उत्पादित होने वाला सेब देश की विभिन्न मंडियों में सबसे पहले दस्तक देता है जिससे बागवानों को अच्छे दाम प्राप्त होते हैं । आड़ू में विभिन्न प्रकार के रोग लगने से किसानों ने अब आड़़ू की जगह सेब के पौधे लगाने आरंभ कर दिए गए है क्योंकि आड़ू के जलवायु के आधार पर कम ऊंचाई वाले सेब के पौधे काफी कामयाब हो रहे हैं । विभागीय सूत्रों के अनुसार राजगढ़ वैली में हर वर्ष करीब 15 हजार मिट्रिक टन फलोत्पादन होता है जिसमें छः हजार मिट्रिक टन आड़ू, 3580 मिट्रिक टन पलम, चार हजार मिट्रिक टन सेब और 12 सौ मि0टन खुमानी का उत्पादन होता है ।
उन्होने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा बागवानों के लिए यूएसए से सेब की सर्वोतम क्लालिटी के 50 हजार पौधे आयात किए गए हैं । जिनमें मुख्यतः क्रिमसन टोपाज, एंबरोसिया, सिम्मन गाला, प्रायमिर हन्नी क्रिस्प और हन्नी क्रिस्प शामिल है । किसानों को यह पौधे उपदान पर 400 रूपये प्रति पौधा उपलब्ध करवाया जा रहा है जबकि यूएसए से यह करीब आठ सौ रूपये प्रति पौधा विभाग द्वारा आयात किया गया है । इसके अतिरिक्त विभाग द्वारा एक लाख रूट स्टाॅक को वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है । जिन्हें किसानों को उपदान पर एक सौ रूपये प्रति रूट स्टाॅक वितरित किए जाएंगे । यह रूट स्टाॅक विभागीय नर्सरी में तैयार किए गए हैं । बताया कि उद्यान विभाग राजगढ़ के अधीन तीन ब्लाॅक राजगढ़, संगड़ाह और सरांह आते हैं जिनमें पौधे व रूट स्टाॅक उपलब्ध करवाने के लिए स्थान तय किए गए हैं । इसके अतिरिक्त आड़ू, नाशपाती, खुमानी के रूट स्टाॅक भी उपलब्ध है जिन्हें किसानों को 75 रूपये प्रति रूट स्टाॅक उपलब्ध करवाया जा रहा है ।
डाॅ0 अत्री ने बताया कि अमेरिका से आयात किए गए सेब के पौधे सभी समुद्र तल से 4000 से 6000 फुट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्वाधिक उपयोगी माने गए है । सेब के पौधे तीसरे अथवा चैथे साल में फल को सैंपल देने लग जाते हैं अर्थात विभाग द्वारा दो साल वाले सेब के पौधे वितरित किए जा रहे है जोकि दो साल उपरांत सैंपल दे देगें। उन्होने बताया कि विश्व बैंक के सौजन्य से 1100 करोड़ रूपये की हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना विकसित की जा रही है जिसके तहत बागबानी को बढ़ावा देने के लिए अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित किए जा रहे हैं ताकि किसानों का रूझान बागवानी की ओर बढ़े और बागवानी आय का अतिरिक्त साधन बन सके ।
बता दें कि राजगढ़ क्षेत्र में उत्पादित होने वाला सेब देश की विभिन्न मंडियों में सबसे पहले दस्तक देता है जिससे बागवानों को अच्छे दाम प्राप्त होते हैं । आड़ू में विभिन्न प्रकार के रोग लगने से किसानों ने अब आड़़ू की जगह सेब के पौधे लगाने आरंभ कर दिए गए है क्योंकि आड़ू के जलवायु के आधार पर कम ऊंचाई वाले सेब के पौधे काफी कामयाब हो रहे हैं । विभागीय सूत्रों के अनुसार राजगढ़ वैली में हर वर्ष करीब 15 हजार मिट्रिक टन फलोत्पादन होता है जिसमें छः हजार मिट्रिक टन आड़ू, 3580 मिट्रिक टन पलम, चार हजार मिट्रिक टन सेब और 12 सौ मि0टन खुमानी का उत्पादन होता है ।