प्रो धूमल ने दोनों जगह नहीं लिया भाजपा कैंडिडेट का नाम
एक नेता की चुनाव प्रचार से बनाई गई अब दूरी
चुनाव के बाद हो सकता है बड़ा परिवर्तन
नाहन। पच्छाद उपचुनाव में बुरी तरह फैंटी जा रही मलाई में से बीजेपी नाम का मक्खन बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहा है। बीजेपी वर्सेस कथित बीजेपी की लड़ाई में अभी भी कथित बीजेपी का पलड़ा भारी चल रहा है। इस पलड़े को डाउन करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की दो चुनावी सभाएं कुछ खास कारगर साबित नहीं हुई है।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री को बुलाया जाना एक खास रणनीति का हिस्सा था मगर यहां भी बड़ी बात यह रही कि दोनों चुनावी सभा में ना तो भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप मौजूद रही और ना ही पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में दोनों जगह उसका कहीं नाम लिया।
पूर्व मुख्यमंत्री ने दोनों चुनावी सभा में मोदी सरकार व 370 सहित अपने कार्यकाल में किए गए तमाम विकास कार्यों का जमकर बखान किया। मगर मौजूदा सरकार को लेकर जो लोग अपेक्षा कर रहे थे उसकी जगह रेणुकाजी विधानसभा क्षेत्र के संगड़ाह के विकास कार्य और पौंटा साहिब के विधायक कि पहली बीजेपी की जीत की बातें ही ज्यादा रही।
इस उपचुनाव में शह मात के खेल में हालांकि अभी जयराम ठाकुर ने ब्रह्मास्त्र नहीं चलाया है मगर यह भी साफ है कि प्रचार की रणनीतियों में एक बड़ा बदलाव किया गया है। गिरि पार सहित गिरी आर के एक बड़े वर्ग की नाराजगी को दूर करना भले ही आसान ना हो। मगर फील्ड मार्शल ने फिलहाल एक मुख्य नेता को चुनाव प्रचार से दूरी बनाने को कह दिया है।
क्योंकि जनता का जो फीडबैक आ रहा था उसके बाद कहीं ना कहीं डैमेज कंट्रोल को लेकर जो रणनीति तैयार की गई है वह कितनी कारगर सिद्ध होगी यह तो चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा। मगर अपरोक्ष रूप से सत्ता पक्ष के कुछ खास नेता जिस तरीके से दबाव बना रहे हैं उससे क्षेत्र का अड़ियल वर्ग जो कि यहां का मुख्य ठाकुर वर्ग है वह काफी नाराज भी चल रहा है।
कथित भाजपा पर भाजपा समय रहते अगर रणनीति बदल लेती है तो निश्चित ही भाजपा प्रत्याशी भले ही बहुत कम मार्जिन से जीते मगर जीत जाएगा। अब देखना यह है कि जयराम ठाकुर अपना तुरुप का इक्का कब फेंकते हैं। क्योंकि अभी तो जितनी बार चेक देने की कोशिश करते हैं उतनी बार सामने वाले को बचाव का रास्ता मिल जाता है। मगर फिर भी इस पॉलीटिकल शतरंज की गेम में अंतिम मात देने की जुगत अभी भी बड़े ठाकुर के पास है।
बड़ी बात तो यह भी है कि कांग्रेस जिस प्रकार भाजपा को घेरने की तैयारी कर रही है उससे कांग्रेस प्रत्याशी को कम टेलीफोन को ज्यादा फायदा पहुंचता है। संभवत कांग्रेसी यह नहीं समझ पा रही है की वोटर भाजपा से नहीं नाराज है और ना ही प्रत्याशी से। बल्कि मामला कुछ और ही है।
सिंपैथी वोट जिस बड़ी रणनीति के साथ दयाल प्यारी के साथ जुड़ा है उससे तो पर्दे के पीछे वाले चेहरे का अंदाज साफ झलकता है और इसके भले ही सबूत ना मिले हो मगर संकेत तो मिल ही चुके हैं।
जानकारी तो यह भी है कि जिन कुछ बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों ने टेलीफोन का रिचार्ज किया है उसके पीछे भी एक बड़ा इशारा है। जानकारी तो यह भी है कि जिला सिरमौर में बड़े राजनीतिक गुरु की शरण में भी कुछ लोग हाजिरी दे चुके हैं। यह गुरु ऐसे हैं जिन्होंने बीजेपी को कई बड़े चेहरे दिए है।
बरहाल यह उपचुनाव सत्ता पक्ष के वर्चस्व की जंग है। इस जंग में कुछ अपना कद फिर से साबित करना चाहते हैं। तरह-तरह के पासे फेके जा रहे हैं। अब पैसों की पौ बारह होगी या फिर जयराम ठाकुर का चेक एंड मैट यह तो 21 के बाद ही पता चल पाएगा।
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Thursday, May 2