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    सिरमौर

    गर्मी से निजात पाने के लिए भेड़पालकों ने किया पहाड़ों का रूख

    By Himachal VartaApril 23, 2025
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    नाहन  ( हिमाचल वार्ता न्यूज़)(एसपी जैरथ):-  सिरमौर जिला के  निचले क्षेत्रों में तापमान बढ़ने से    भेड़ पालकों ने  पहाड़ों की ठंडी वादियों का रूख कर दिया   है । पूरे वर्ष भेड़पालक सर्दियों में मैदानी क्षेत्र और गर्मियों में पहाड़ों की ओर पलायन करते हैं । चिलचिलाती गर्मी, बरसात और ठिठुरती  ठंड में गडरिये अपनी भेड़ बकरियों के साथ  खुले मैदान में डेरा जमाए रहते हैं । गर्मियों  में अधिकांश चरावाहे नारकंडा, किन्नौर व डोडरा क्वार के जंगलों में अपनी भेड़ बकरियों के साथ रहते हैं ।
    किन्नौर के छितकुल से आए घुमंतु भेड़पालक छेरिंग का कहना है कि भेड़-बकरियों को पालना उनका पुश्तैनी व्यवसाय है इस परंपरा को कायम रखने के लिए वह साल भर घरों से बाहर रहकर अपना जीवन यापन करते हैं । इनका कहना है कि उनका जीवन बहुत संघर्षमय है परंतु वह इस कार्य से अभयस्त हो चुके है अन्यथा बिना छत के साल भर  बाहर रहना बहुत कठिन कार्य हैं। इनका कहना है कि किन्नौर में अब यह व्यवसाय काफी कम हो चुका है गिने चुने कुछ परिवार ही इस व्यवस्साय से जुड़े हैं जिसका मुख्य कारण युवाओं का शिक्षित होना भी है ।  इसी प्रकार डोडरा क्वार से भेड़-बकरियों आए रामदास कहना है कि विशेषकर निचने क्षेत्रों में  चारागाहों की भी कमी हो गई है जिस कारण इस पेशे से जुड़े  अनेक लोगों यह कार्य छोड़ दिया है । कहा कि पहले सरकार से चरागाह के परमिट आसानी से मिलते थे परंतु अब लोगों द्वारा शामलात भूमि पर कब्जे किए जाने के कारण उन्हें भेड़ बकरियों को चुराने के लिए बहुत कठिनाई पेश आ रही है ं ।
    गौर रहे कि प्रदेश के किन्नौर, डोडराक्वार, चंबा, पांगी इत्यादि के क्षेत्रों में घुमतु भेड़ पालकों की संख्या काफी अधिक है । पशु पालन विभाग के अनुसार प्रदेश के छः जिलों चंबा, कांगड़ा, कूल्लू, शिमला, किन्नौर और सिरमौर में भेड़ पालन का कार्य किया जाता है और वर्तमान में इन क्षेत्रों में भेड़ बकरियों की संख्या करीब 19 लाख है जिनमें से 60 प्रतिशत घुमंतु भेड़पालक है जिन्हें सुविधाएं प्रदान करने के लिए वूल फैडरेशन द्वारा समय समय पर जागरूकता कैंप लगाए जाते है । वूल फैडरेशन के अनुसार भेड़ पालकों को सोलर लाईटें,  प्राथमिक उपचार किटें, तिरपाल इत्यादि सामान निःशुल्क उपलब्ध करवाया जाता है । फैडरेशन द्वारा उचित दरों पर भेड़ पालकों से ऊन भी खरीदी जाती है जिसके लिए प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर विशेष संग्रहण केंद्र खोले गए है ।

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